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{XXI} खास कारण है कि पूर्वाचार्यों ने पर्युषण के आष्टाह्निक पर्व में आठ वर्ग वाले इस मंगलमय शास्त्र का बोधप्रद वाचन निश्चित किया । जैसे मंगल हेतु एवं ऐतिहासिक परिचय प्रदान करने को कल्पसूत्र में महावीरादि के पंच कल्याण और पट्टावली का वाचन आवश्यक माना गया है, वैसे ही लगता है कि आत्म-साधना में प्रेरणा प्रदान करने के लिए अन्तकृद्दशा का वाचन भी आरम्भ किया गया हो।
वीर निर्वाण सम्वत् 993 के समय ‘कल्प-सूत्र' का सामूहिक वाचन होने लगा था, सम्भव है । उस समय साधना प्रेमी सन्तों ने यह सोचकर कि कल्पसूत्र में केवल तीर्थङ्कर भगवान की गुण-गाथा है, चतुर्विध संघ की साधना के लिये वैसी प्रेरणादायक सामग्री नहीं है अत: इसका वाचन आवश्यक माना हो, अथवा तो समाज में आडम्बर और जन्म महोत्सव की भक्ति आदि की ओर बढ़ते मोड़ को बदलने के लिए अन्तकृद्दशा का वाचन चालू किया हो । इतना सुनिश्चित है कि पर्वाधिराज में अंतकृद्दशा का वाचन सहेतुक एवं उपयोगी है।
उपयोग पूर्वक कार्य करने पर भी वीतराग वाणी से कहीं विपरीत लिखा हो तो हार्दिक पश्चात्ताप के साथ मैं अपने उद्गार समाप्त करता हूँ।
(ये उद्गार सन् 1965 में प्रकाशित 'सिरि अंतगडदसाओ' के प्रथम संस्करण एवं सन् 1987 में प्रकाशित तृतीय संस्करण से उद्धृत हैं। आचार्य प्रवर ने प्रथम उद्गार श्रावण पूर्णिमा सम्वत् 2020 को पीपाड़शहर में प्रकट किये थे।)
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श्रावण पूर्णिमा, विक्रम सं. 2020 पीपाड़शहर (सन् 1965 में प्रकाशित प्रथम संस्करण से उद्धृत)