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साधनाओं की आधार भूमि है। चारित्र के बिना सभी आराधनाएँ अधूरी व अकार्यकारी हैं। इस आगम में वर्णित सभी महापुरुषों ने उत्कृष्ट चारित्र की आराधना कर मुक्ति प्राप्त की है।
तप साधना
अन्तकृद्दशा सूत्र के वर्णनों पर गहराई से चिन्तन किया जाये तो साधना क्षेत्र की विविध सामग्रियाँ उपलब्ध होती हैं ।
सामान्य तौर से संयम और तप की विमल साधना से मुक्ति की प्राप्ति मानी गयी है । संयम का साधन ज्ञानपूर्वक ही होता है, अत: उसके लिए जीवाजीवादि का तत्त्वज्ञान आवश्यक माना गया है। विषय-कषाय को जीतने के लिए ज्ञान या ध्यान का बल पुष्ट साधन है और तप, ज्ञान-ध्यान का साधन है, अथवा ज्ञान ध्यान स्वयं भी एक प्रकार का तप है। फिर भी व्यवहार दृष्टि से यह जिज्ञासा हो सकती है कि क्या ज्ञान साधना से मुक्ति होती है? या ध्यान से या कठोर तप साधना से या उपशम से ?
अंतगडदसा सूत्र के मनन से ज्ञात होता है कि गौतम आदि 18 मुनियों के समान 12 भिक्षु प्रतिमाओं एवं गुणरत्न संवत्सर तप की साधना से भी साधक कर्मक्षय कर मुक्ति पा लेता है। अनीकसेनादि मुनि 14 पूर्वों के ज्ञान में रमण करते हुए सामान्य बेले - बेले की तपस्या से कर्मक्षय कर मुक्ति के अधिकारी बन गए । अर्जुनमाली ने उपशमभाव - क्षमा की प्रधानता से केवल छह मास बेले- बेले की तपस्या कर सिद्धि पा ली। दूसरी ओर अतिमुक्त कुमार ने ज्ञानपूर्वक गुणरत्न तप की साधना से सिद्धि पाई और गजसुकुमाल ने बिना शास्त्र पढ़े और लम्बे समय तक साधना एवं तपस्या किए बिना ही केवल एक शुद्ध ध्यान के बल से ही सिद्धि प्राप्त कर ली। इससे प्रकट होता है कि ध्यान भी एक बड़ा तप है। काली आदि रानियों ने संयम लेकर लम्बे समय तक कठोर साधना से सिद्धि पाई। इस प्रकार कोई सामान्य तप से, कोई कठोर तप से, कोई क्षमा की प्रधानता से तो कोई अन्य केवल आत्म-ध्यान की अग्नि में कर्मों को झोंक कर सिद्धि के अधिकारी बन गए ।
यह है कि शास्त्रों का गम्भीर अभ्यास और लम्बे काल का कठोर तप चाहे हो या न हो, यदि कर्म हल्के हैं और आत्मध्यान में मन अडोल है तो अल्प काल में भी मुक्ति हो सकती है ।
विविध प्रकार के तप
अंतगडदसा सूत्र में ध्यान की साधना का तो स्पष्ट रूप नहीं मिलता, पर तपस्या के अनेक प्रकार उपलब्ध होते हैं। सर्वप्रथम 12 भिक्षु प्रतिमाओं का वर्णन है, जिनका विस्तृत उल्लेख दशाश्रुत स्कन्ध में मिलता है । दूसरा गुण रत्न संवत्सर तप है जो गौतमकुमार आदि मुनियों के द्वारा साधा गया । इसके लिए सैलाना से प्रकाशित अंतगडदसा के टिप्पण में ऐसा लिखा है कि प्राचीन धारणा के अनुसार इसका आराधना काल ऋतुबद्ध यानी 8 मास है परन्तु भगवती सूत्र शतक 2 उद्देशक 1 में खंदक मुनि के