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षष्ठ वर्ग द्वितीय अध्ययन ]
मंकाई गाथापति भी भगवती सूत्र में वर्णित गंगदत्त के वर्णन के समान भगवान के दर्शनार्थ एवं धर्मोपदेश श्रवणार्थ अपने घर से निकला। भगवान ने धर्मोपदेश दिया, जिसे सुनकर मंकाई गाथापति संसार से विरक्त हो गया । उसने घर आकर अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सौंपा और स्वयं हजार पुरुषों से उठाई जाने वाली शिविका (पालकी) में बैठकर श्रमण दीक्षा अंगीकार करने हेतु भगवान की सेवा में आये । यावत् वे अणगार हो गये । ईर्या आदि समितियों से युक्त एवं गुप्तियों से गुप्त ब्रह्मचारी बन गये ।
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इसके बाद मंकाई मुनि ने श्रमण भगवान महावीर के गुणसंपन्न तथा रूप स्थविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और स्कंदकजी के समान, गुणरत्न संवत्सर तप का आराधन किया । सोलह वर्ष की दीक्षा पर्याय पाली और अन्त में विपुल गिरि पर स्कन्दकजी के समान ही संथारादि करके सिद्ध हो गये ।
।। इइ पढममज्झयणं-प्रथम अध्ययन समाप्त ।।
बिइयमज्झयणं-द्वितीय अध्ययन
सूत्र 2
मूलदोच्चस्स उक्खेवओ, किंकमे वि एवं चेव जाव विपुले सिद्धे ।2। संस्कृत छाया - द्वितीयस्य उत्क्षेपकः । किंकमः अपि एवम् चैव । यावत् विपुले सिद्धः 12 1 अन्वायार्थ-दोच्चस्स उक्खेवओ = दूसरे अध्ययन का प्रारम्भ, किंकमे वि एवं चेव = किंकम भी मंकाई के समान ही दीक्षा लेकर, जाव विपुले सिद्धे विपुलाचल पर सिद्ध बुद्ध मुक्त हो गये। भावार्थ- दूसरे अध्ययन में 'किंकम' गाथापति का वर्णन है । वे भी 'मंकाई' गाथापति के समान ही प्रभु महावीर के पास प्रव्रजित होकर विपुल गिरि पर सिद्ध-बुद्ध और सर्वदुःखों से मुक्त हो गये ।
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टिप्पणी-उक्खेवओ (उत्क्षेपक) - प्रारम्भिक वाक्य । उपोद्घात । भूमिका । यह शब्द इस भाव का द्योतक है कि प्रभु महावीर ने पिछले अध्ययन अथवा वर्ग का जो भाव कहा है वह सुना। अब अगले अध्ययन अथवा वर्ग का क्या अर्थ कथन किया है। यह कृपा कर बताइये।
।। इइ बिइयमज्झयणं-द्वितीय अध्ययन समाप्त ।।