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[अंतगडदसासूत्र यावत् प्रव्रजितुं तं खलु कृष्ण: वासुदेवः विसर्जयति, पश्चादातुरस्यापि च सः यथाप्रवृत्तं वृत्तिं अनुजानाति, महता ऋद्धि सत्कार-समुदयेन च सः (तस्य) निष्क्रमणं करोति (करिष्यति) द्विवारमपि त्रिवारमपि घोषणकं घोषयथ, घोषित्वा (उद्घोष्य) मम एताम् आज्ञप्तिं प्रत्यर्पयत । ततः खलु ते कौटुम्बिकपुरुषा: यावत्
प्रत्यर्पयन्ति। अन्वायार्थ-तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहओ = तदनन्तर वह कृष्ण वासुदेव भगवान, अरिट्ठणेमिस्स अंतिए = अरिष्टनेमि के पास से, एयमढें सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ० = यह बात सुनकर समझकर प्रसन्न होते हुए, अप्फोडइ, अप्फोडित्ता वग्गइ = भुजाओं पर ताल ठोकने लगे, ताल ठोक कर जयनाद करते हैं, वग्गित्ता तिवई छिंदइ = जयनाद करके समवसरण में त्रिपदी का छेदन करते हैं, छिंदित्ता सीहणायं करेइ, करित्ता = पीछे हटकर सिंहनाद करते हैं, सिंहनाद करके, अरहं अरिट्ठणेमिं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता तमेव = भगवान अरिष्टनेमि को वन्दना. नमस्कार करते हैं वन्दना नमस्कार करके उसी. अभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुहइ = अभिषेक योग्य हाथी पर चढ़े, दुरुहित्ता जेणेव बारवई णयरी = आरूढ होकर जहाँ द्वारिका नगरी है, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए = तथा जहाँ अपना प्रासाद है वहाँ आते हैं।, अभिसेय हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ = आभिषेक्य हस्तिरत्न से उतरते हैं, पच्चोरुहित्ता जेणेव बाहिरिया = उतरकर जहाँ बाहरी, उवट्ठाणसाला जेणेव सए सीहासणे = उपस्थान शाला तथा जहाँ स्वयं का सिंहासन है, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता = वहाँ पर आते हैं, वहाँ आकर, सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे = श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व की तरफ मुख करके बैठकर, निसीयइ निसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे = विराजमान होते हैं, आज्ञाकारी पुरुषों को, “गच्छ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- = (बुलाते हैं, बुलाकर कहते हैं)-हे देवानुप्रियो ! तुम लोग जाओ, बारवईए नयरीए सिंघाडग जाव = व द्वारिका में शृंगाटक यावत् राजमार्ग पर, उग्घोसेमाणा एवं वयह- = घोषणा करते हुए इस प्रकार कहो-, “एवं खलु देवाणुप्पिया ! = हे द्वारिकावासी देवानुप्रियो !, बारवईए नयरीए दुवालस जोयणआयामाए जाव = बारह योजन में फैली हुई, पच्चक्खं देवलोग-भूयाए = प्रत्यक्ष देवलोक के समान इस द्वारिका नगरी का, सुरग्गिदीवायणमूले विणासे = सुरा, अग्नि व द्वैपायन के कारण नाश, भविस्सइ तं जो णं
देवाणुप्पिया = होगा, इस कारण हे देवानुप्रियो ! जो, इच्छइ बारवईए, नयरीए = भी कोई इस द्वारिका पुरी में, नगरी, राया वा, जुवराया वा = का राजा हो या युवराज हो, ईसरे, तलवरे, = अधिपति हो, श्रेष्ठ तल वाला सैनिक हो, माडंबिए, कोडुंबिए, = माडंबिक हो, कौटुम्बिक (घरेलू नौकर), इन्भे, सेट्ठी वा, देवी वा = हो, धनी हो, सेठ हो, रानी हो, कुमारो वा, कुमारी वा, अरहओ अरिट्ठणेमिस्स = कुमार हो,