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[अंतगडदसासूत्र त्वं देवानुप्रिय! अवहत यावत् ध्यायस्व । एवं खलु त्वं देवानुप्रिय! तृतीयस्याः पृथिव्या: उज्ज्वलिताया अनन्तरं उद्धृत्य इहैव जम्बूद्वीपे भारते वर्षे आगमिष्यन्त्याम् उत्सर्पिण्यां पुण्ड्रेषु जनपदेषु शतद्वारे (नगरे) द्वादशमो अममो नाम अर्हन् भविष्यसि ।
तत्र त्वं बहूनि वर्षाणि केवलपर्यायं पालयित्वा सेत्स्यसि । अन्वायार्थ-तए णं कण्हे वासुदेवे = तब श्री कृष्ण वासुदेव, अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए = भगवान अरिष्टनेमि के पास से, एयमढे सोच्चा णिसम्म = इस बात को सुनकर एवं धारण कर, ओहय जाव झियाइ। = उदास मन होकर आर्तध्यान करने लगे। “कण्हाइ!" अरहा अरिट्ठणेमी = कृष्ण को सम्बोधित कर भगवान अरिष्टनेमि ने, कण्हं वासुदेवं एवं वयासी- = कृष्ण वासुदेव को ऐसे कहा, "मा णं तुमं देवाणुप्पिया! = हे देवानुप्रिय ! तुम, ओहय जाव झियाहि । = उदास होकर आर्तध्यान मत करो। एवं खलु तुम देवाणुप्पिया! = निश्चय ही हे देवानुप्रिय!, तच्चाओ पुढवीओ उज्जलियाओ = तीसरी पृथ्वी की उत्कट वेदना के, अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबूद्दीवे भारहेवासे = अनन्तर (वहाँ से) निकलकर यहाँ ही जम्बूद्वीप में भारतवर्ष में, आगमिस्साए उस्सप्पिणीए = आने वाली उत्सर्पिणी काल में, पुंडेसु जणवएसुसयदुवारे भविस्ससि = पौण्ड्र जनपद में शतद्वार नगर में, बारसमे अममे णामं अरहा = बारहवें अमम नामक अर्हन्त बनोगे । तत्थ तुम बहूई वासाइं = वहाँ पर बहुत वर्षों तक, केवलपरियायं पाउणित्ता सिज्झिहिसि' = केवलीपर्याय का पालन कर सिद्ध बुद्ध मुक्त बनोगे।
__भावार्थ-प्रभु के श्रीमुख से अपने आगामी भव की यह बात सुनकर कृष्ण वासुदेव खिन्न मन होकर आर्तध्यान करने लगे। तब अर्हन्त अरिष्टनेमि पुन: इस प्रकार बोले-“हे देवानुप्रिय ! तुम खिन्नमन होकर आर्तध्यान मत करो। निश्चय से हे देवानुप्रिय ! कालान्तर में तुम तीसरी पृथ्वी से निकल कर इसी जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में आने वाले उत्सर्पिणी काल में पुंड्र जनपद के शतद्वार नाम के नगर में अमम' नाम के बारहवें तीर्थङ्कर बनोगे । वहाँ बहुत वर्षों तक केवली पर्याय का पालन कर तुम सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होओगे। सूत्र 7
तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ० अप्फोडइ, अप्फोडित्ता वग्गइ, वग्गित्ता तिवई छिदइ, छिंदित्ता सीहणायं करेइ, करित्ता अरहं अरिहणेमिं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव अभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुहइ दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए, अभिसेय हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सए
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