________________
{XII} परम श्रद्धेय युगमनीषी अखण्ड बाल ब्रह्मचारी पूज्य गुरुदेव 1008 आचार्य प्रवरश्री हस्तीमलजी म.सा. आगम की जीवन्त प्रतिमूर्ति थे। आगम के प्रति उनके अंतर में अगाध श्रद्धा थी। जीवन को समुन्नत बनाने का आधार आगम ही है। उन आगमों को प्रत्येक श्रद्धालु सरलता से समझ सके इस हेतु उन्होंने अनेक आगमों की व्याख्याएँ की, अंतगड़दसाङ्ग सूत्र उसी लड़ी की एक कड़ी है। व्यसनमुक्ति के प्रबल प्रेरक, आगम मर्मज्ञ, आचार्य भगवन् पूज्य गुरुदेव 1008 श्री हीराचन्द्रजी म.सा. की भावना रही कि अंतगड़ सूत्र के प्रत्येक शब्द का अर्थ भी जोड़ा जाय जिससे स्वाध्यायकर्ता के भावों में ओर अधिक विशद्धता आ सके अत: उन्हीं के दिशा-निर्देशन में इस संस्करण को अधिक उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है।
इस संस्करण में संत-महासती मण्डल के सान्निध्य में अध्ययन-अध्यापन कराते तथा परीक्षा आदि के माध्यम से प्राप्त सामग्री तथा जिनवाणी के अंतगड-विशेषांक का सहयोग भी लिया गया है. सभी के प्रति नतमस्तक होते हुए साधुवाद ज्ञापित करता हूँ।
जीवन को सुंदर बनाने में पूज्य गुरुदेव का महान् उपकार है, उन्हीं की अहेतुकी कृपा निरंतर सत्कार्यों के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित करती है, परिणामस्वरूप यह संस्करण श्रीचरणों में सादर-समर्पित है।
अल्पज्ञता व प्रमादवश यदि कोई बात वीतरागवाणी के विपरीत लिखने में आ गई हो तो उसका मिच्छा मि दुक्कडं देते हुए सुधी पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे गलतियों को ध्यान दिलावें ताकि आगे सुधार किया जा सके। सुज्ञेषु किं बहुना।
आपका
प्रकाशचन्द जैन मुख्य-सम्पादक - अ.भा.श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ