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[अंतगडदसासूत्र विभूषित: हस्तिस्कन्धवरगतः, सकोरंटकमाल्यदाम्ना छत्रेण ध्रियमाणेन श्वेतवरचामरैः उद्धवद्भिः (उद्धूयमानैः) महाभटचाटुकारप्रकरवृन्द-परिक्षिप्त: द्वारावत्याः नगर्या: मध्यमध्येन यत्रैव अर्हन् अरिष्टनेमी तत्रैव प्राधारयद् गमनाय । ततः खलु स: कृष्ण: वासुदेव: द्वारावत्याः नगर्या: मध्यमध्येन निर्गच्छन् एकं पुरुषं पश्यति. जीर्णम् जराजर्जरितं देहं यावत् क्लिन्नं (क्लान्तं) महातिमहालयात् इष्टकाराशेः एकामेकाम् इष्टकां गृहीत्वा बहि: रथ्यापथात् अन्तर्गृहम् अनुप्रवेशयन्तम् पश्यति । तत: खलुः सः कृष्ण:वासुदेव: तस्य पुरुषस्य अनुकंपनार्थं हस्तिस्कन्धवरगतश्चैव एकाम् इष्टकां गृह्णाति, गृहीत्वा बहि:रथ्यापथात् अन्तर्गृहम् अनुप्रवेशयति । ततः खलु कृष्णेन वासुदेवेन एकस्याम् इष्टकायां गृहीतायां सत्याम् अनेकैः पुरुषशतैः
असौ महान् इष्टकाया: राशि: बहिः रथ्यापथात् अन्तर्गृहे अनुप्रवेशितः। अन्वयार्थ-तए णं से कण्हे वासुदेवे = तदनन्तर वह कृष्ण वासुदेव, कल्लं पाउप्पभायाए जाव- = दूसरे दिन प्रात:काल सूर्योदय होने पर, जलंते ण्हाए जाव विभूसिए = स्नान से निवृत्त हो यावत् वस्त्राभूषणों से भूषित हुआ, हत्थिक्खंधवरगए = श्रेष्ठ हाथी पर सवार हुआ, सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं = कोरंट के फूलों की मालायुक्त, धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं = छत्र धारण किये हुए श्वेत चामरों से, उद्धवमाणीहिं = बीजे जाते हुए तथा, महया भडचउगरपहकरवंद = बड़े-बड़े योद्धाओं व सेवक, परिक्खित्ते = समूह से घिरे हुए, बारवई नयरी मज्झंमज्झेणं = द्वारावती नगरी के बीच-बीच से, जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी = जहाँ पर भगवान अरिष्टनेमी थे, तेणेव पहारेत्थ गमणाए = वहाँ ही जाने का निश्चय किया। तए णं से कण्हे वासुदेवे = तदनन्तर वह कृष्ण वासुदेव, बारवईए नयरीए मज्झमज्झेणं = द्वारावती नगरी के मध्य भाग, णिग्गच्छमाणे एक्कं पुरिसं = से निकलते हुए एक पुरुष, पासइ, जुण्णं = को देखते हैं, वह अतिवृद्ध, जराजज्जरिय देहं जाव = जरा से जर्जरित देहवाला यावत्, किलंतं महई महालयाओ = थका हुआ था और जो बहुत, इट्टगरासीओ एगमेगं = बड़े ईंटों के ढेर में से एक एक, इट्टगं गहाय बहिया = ईंट को लेकर बाहर गली के, रत्थापहाओ अंतोगिहं = रास्ते से घर के भीतर, अणुप्पविसमाणं पासइ = ले जा रहा था, ऐसे को देखा । तए णं से कण्हे वासुदेवे = तब उन कृष्ण वासुदेव ने, तस्स पुरिसस्स अणुकंपणट्ठाए = उस पुरुष की अनुकम्पा के लिये, हत्थिक्खंधवरगए चेव = हाथी पर बैठे हुए ही, एग इट्टगं गिण्हइ = एक ईंट को उठा लिया, गिण्हित्ता बहिया रत्थापहाओ = उठाकर बाहर गली के रास्ते से, अंतोगिहं अणुप्पवेसेइ = घर के भीतर पहुँचा दिया।
तए णं कण्हेणं वासुदेवेणं = तब कृष्ण वासुदेव के द्वारा, एगाए इट्टगाए गहियाए = एक ईंट उठा लेने पर, समाणीए अणेगेहिं पुरिससएहि = अनेक सैंकड़ों पुरुषों द्वारा, से महालए इट्टगस्स = वह बहुत