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________________ चतुर्थ अध्ययन - प्रतिक्रमण] 63} शबलदोष-'शबलं-कर्बुरं चारित्रं यैः क्रिया-विशेषैर्भवति ते शब्बला-स्तद्योगात्साधवोऽपि।' अर्थात् जिन कार्यों (क्रियाओं को करने) से चारित्र कर्बुर (धब्बे युक्त मलक्लिन्न-कर्म मैल से युक्त चित्त कबरा) हो जाता है, उन्हें शबल दोष कहते हैं । उक्त दोषों को सेवन करने वाले साधु भी शबल कहलाते हैं। परीषह-क्षुधादि किसी भी कारण के द्वारा आपत्ति आने पर संयम में स्थिर रहने के लिए तथा कर्मों की निर्जरा के लिए जो शारीरिक तथा मानसिक कष्ट साधुओं को सहन करने चाहिए, उन्हें परीषह कहते हैं। रत्नत्रय स्वरूप मोक्ष-मार्ग से च्युत न होने के लिए अर्थात् संयम में स्थिर रहने के लिए और कर्मों की निर्जरा के लिए जो स्वेच्छा से सहन किये जाते हैं उन्हें परीषह कहते हैं। सूत्रकृतांग के अध्ययन-सूत्रकृतांग सूत्र के 23 अध्ययनों में प्रतिपादित विषयों के अग्रहण रूप अतिचार का प्रतिक्रमण किया जाता है। दशाकल्प व्यवहार के उद्देशक-दशासूत्र (दशाश्रुत स्कन्ध) के 10, कल्पसूत्र (बृहत्कल्प) के 6, व्यवहार सूत्र के 10 उद्देशक के कुल 26 इन 26 उद्देशकों में प्रतिपादित साधु के आचार में लगे हुए दोषों का प्रतिक्रमण किया जाता है। पापश्रुत प्रसंग-पापश्रुत प्रसंग-पापों के उपार्जन करने वाले शास्त्रों का श्रवण। पापश्रुत के 29 भेद बताए है। सिद्धातिगुण-यहाँ आदि गुण का अर्थ है-ये गुण सिद्धों में प्रारम्भ से ही होते हैं, यह नहीं कि कालान्तर में होते हैं। क्योंकि सिद्धों की भूमिका क्रमिक विकास की नहीं है। आचार्य श्री शांतिसूरि जी सिद्धाइ गुणे शब्द का अर्थ सिद्धाऽति गुण करके सिद्धों के उत्कृष्ट या असाधारण गुण अर्थ कहते हैं। तेतीस बोल में सातवें बोल से लगाकर 32वें बोल तक के भेद-प्रभेद सातवें बोले सात भय-1. इहलोक भय-इस लोक में मनुष्य आदि का भय, 2. परलोक भयदेवादि का भय, 3. आदान भय-सर्प आदि के ग्रहण करने रूप भय, 4. अकस्मात् भय-अचानक बाढ़ आदि से होने वाला भय, 5. आजीविका भय, 6. अपयश भय, 7. मरण भय । आठवें बोले आठ मद-1. जाति मद, 2. कुल मद, 3. बल मद, 4. रूप मद, 5. तप मद, 6. लाभ मद, 7. श्रुत मद, 8. ऐश्वर्य मद। नवें बोले नव बाड़ (गुप्ति-रक्षा) ब्रह्मचर्य की-1. ब्रह्मचारी पुरुष, स्त्री, पशु, नपुंसक सहित स्थान में रहे नहीं, रहे तो चूहे को बिल्ली का दृष्टान्त । 2. ब्रह्मचारी पुरुष, स्त्री सम्बन्धी काम-राग बढ़ाने वाली कथा वार्ता करे नहीं, करे तो रसना को इमली और नींबू का दृष्टान्त ।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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