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________________ { 48 [आवश्यक सूत्र अतिक्रम-प्रतिज्ञा को भंग करने का संकल्प। व्यतिक्रम-व्रत भंग करने के लिए साधन जुटा लेना। अतिचार-व्रत भंग के लिए उद्यत होना तथा एक देश से व्रत खण्डित कर देना । अनाचार-सर्वथा या अधिकांश रूप में व्रत भंग कर देना। अहिंसादि महाव्रत रूप मूलगुणों में अतिक्रम, व्यतिक्रम तथा अतिचार के कारण मलिनता आती है अर्थात् चारित्र का मूल रूप दूषित होता है, परन्तु सर्वथा नष्ट नहीं होता। अत: उसकी शुद्धि आलोचना एवं प्रतिक्रमण के द्वारा करने का विधान है। परन्तु मूलगुणों में जानते अजानते अनाचार का दोष लग जाय तो अन्य प्रायश्चित्त से शुद्धि होती है। कुछ विशेष प्रसंगों पर नये सिरे से व्रत ग्रहण किया जाता है। उत्तरगुणों में अतिक्रमादि चारों ही दोषों से चारित्र में मलिनता आती है। परन्तु पूर्णत: चारित्र भंग नहीं होता है । स्वाध्याय और प्रतिलेखन उत्तर गुण हैं, अत: प्रस्तुत काल में प्रतिलेखन सूत्र के द्वारा चारों दोषों का प्रतिक्रमण किया जाता है। प्रतिलेखना(अ) अप्रमाद प्रतिलेखना'(1) अणच्चावियं-प्रतिलेखना करते समय शरीर और वस्त्र आदि को इधर-उधर नचाना नहीं चाहिए। (2) अवलियं-प्रतिलेखना करते समय वस्त्र कहीं से मुड़ा हुआ न होना चाहिए। (3) अणानुबंधिं-वस्त्र को अयतना से जोर से नहीं झड़काना चाहिए। (4) अमोसलिं-प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को ऊपर नीचे या तिरछा दीवार से न लगाना चाहिए। (5) छप्पुरिमा नव खोडा-प्रतिलेखना में छ पुरिम और नव खोड़ करने चाहिए । वस्त्र के दोनों हिस्सों को तीन बार खंखेरना, ये छ पुरिम एवं वस्त्र को तीन-तीन बार पूँज कर शोधन करना नव खोड़ है। (6) पाणीपाणि-विसोहणं-वस्त्रादि पर कोई जीव दिखाई देने पर उसका यतना पूर्वक रक्षण करना चाहिए। (ब) प्रतिलेखना की विधि(1) उड़े-उकडू आसन से बैठकर वस्त्र को भूमि से ऊपर रखते हुये प्रतिलेखना करनी चाहिए। (2) थिरं-वस्त्र को दृढ़ता से पकड़ना चाहिए। (3) अतुरियं-प्रतिलेखना जल्दी-जल्दी नहीं करनी चाहिए। 1. उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 26, ठाणांग ठाणा-6
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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