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________________ {254 [आवश्यक सूत्र संसार में चार मंगल हैं, अरिहंत भगवान मंगल हैं, सिद्ध भगवान मंगल हैं, साधु मुनिराज मंगल हैं, केवली का कहा हुआ धर्म मंगल है। चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा । साहु लोगुत्तमा, केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो ।।5।। संसार में चार उत्तम है-अरिहंत भगवान उत्तम है, सिद्ध भगवान उत्तम है, साधु मुनिराज उत्तम है, केवली का कहा हुआ धर्म उत्तम है। चत्तारिसरणं पवज्जामि, अरिहंते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि । साहु सरणं पवज्जामि, केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पवज्जामि ।।6।। चारों की शरण अंगीकार करता हूँ, अरिहंतों की शरण स्वीकार करता हूँ, सिद्धों की शरण स्वीकार करता हूँ। साधुओं की शरण अंगीकार करता हूँ, केवली प्ररूपित धर्म की शरण अंगीकार करता हूँ। संथारा प्रत्याख्यान जइ मे हुज्ज पमाओ, इमस्स देहस्सिमाइ रयणीए। आहारमुवहिदेहं, सव्वं तिविहेण वोसिरिअं।।7।। यदि इस रात्रि में मेरे इस शरीर का प्रमाद हो अर्थात् मेरी मृत्यु हो तो आहार, उपधि (उपकरण) और देह का मन, वचन और काया से त्याग करता है। पापस्थान का त्याग पाणाइवायमलियं, चोरिक्कं मेहूणं दविणमुच्छं। कोहं माणं मायं, लोहं पिज्जं तहा दोसं ।।8।। कलहं अब्भक्खाणं, पेसुन्नं रइ-अरइसमाउत्ता। परपरिवायं माया-मोसं मिच्छत्त-सल्लं च ।।७।। वोसिरसु इमाई, मुक्खमग्गं संसग्गविग्घभूआई। दुग्गइ-निबंधणाई, अट्ठारस पाव-ठाणाई।।10।। ये 18 पापस्थान मोक्ष के मार्ग में विघ्न रूप हैं, बाधक हैं। इतना ही नहीं दुर्गति के कारण भी हैं। अतएव सभी पापस्थानों का मन, वचन और शरीर से त्याग करता हूँ।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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