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________________ {176 [ आवश्यक सूत्र दो बार 'खामेमि खमासमणों' कहते हुए शिष्य गुरु के चरणों में सिर झुकाता है ये 'चार सिर' कहलाते हैं। 20-22. तीन गुप्तियों से गुप्त - तीन गुप्तियों से गुप्त होकर अर्थात् मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्तियों का निषेध कर वंदन करता है। उत्तर 23-24. दो प्रवेश -दो खमासमणो में कुल दो बार निसीह कहकर गुरु अवग्रह में प्रवेश करता है। 25. एक निष्क्रमण - प्रथम खमासमणो में आवस्सियाए शब्द कहकर गुरु अवग्रह से बाहर आना निष्क्रमण है। द्वितीय खमासमणो में गुरु के समीप बैठे-बैठे ही वंदन पूर्ण कर लिया जाता है बाहर आना नहीं होता है अतः निष्क्रमण एक ही होता है। प्रश्न 82. इच्छामि खमासमणो दो बार क्यों बोला जाता है? उत्तर जिस प्रकार दूत राजा को नमस्कार कर कार्य निवेदन करता है और राजा से विदा होते समय फिर नमस्कार करता है, उसी प्रकार शिष्य कार्य को निवेदन करने के लिये अथवा अपराध की क्षमायाचना करने के लिए गुरु को प्रथम वंदना करता है, खमासमणो देता है और जब गुरु महाराज क्षमा प्रदान कर देते हैं, तब शिष्य वंदना करके दूसरा खमासमणो देकर वापस चला जाता है। बारह आवर्तन पूर्वक वन्दन की पूरी विधि दो बार इच्छामि खमासमणो बोलने से ही संभव है। अतः पूर्वाचार्यों ने दो बार इच्छामि खमासमणो बोलने की विधि बतलायी है। प्रश्न 83. 'इच्छामि खमासमणो' के पाठ में आए 'आवस्सियाए पडिक्कमामि' दूसरे खमासमणो में क्यों नहीं बोलते हैं ? जिस प्रकार प्रतिक्रमण की अन्य पाटियों के उच्चारण की अपनी-अपनी विधियाँ एवं मुद्राएँ हैं उसी प्रकार खमासमणो में पहली बार गुरु के अवग्रह (गुरु के समीप देह प्रमाण क्षेत्र) में प्रवेश करके निकलने की एवं दूसरी बार अवग्रह में प्रवेश करने एवं नहीं निकलने की विधि बतलाई है। श्री समवायांग सूत्र में वंदन विधि में इसी प्रकार निर्देश है। प्रश्न 84. 'इच्छामि खमासमणों' के पाठ में आवर्तन किस प्रकार देने चाहिए? उत्तर 'इच्छामि खमासमणो' के पाठ में छह आवर्तन होते हैं। 1. अ हो, 2. का यं, 3. का य, 4. ज त्ता भे, 5. ज्ज व णि, 6. ज्जं च भे । इनमें पहले, दूसरे, तीसरे आवर्तन में प्रथम अक्षर के उच्चारण में दोनों हाथों की दसों अँगुलियाँ गुरु चरणों का स्पर्श करें तथा दूसरे अक्षर में दोनों हाथों की दसों अँगुलियाँ अपने मस्तक का स्पर्श करें, इस प्रकार आवर्तन दिये जाते हैं। चौथे, पाँचवें, छठे आवर्तन में प्रथम अक्षर के उच्चारण में दोनों हाथों की अँगुलियों से गुरु
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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