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________________ {168 प्रश्न 37. उत्तर प्रश्न 38. उत्तर 'तस्सउत्तरी' पाठ का दूसरा नाम क्या है ? 'तस्सउत्तरी' पाठ को 'उत्तरीकरण सूत्र' एवं 'आत्म-शुद्धि' का पाठ भी कहते हैं । [ आवश्यक सूत्र ' तस्सउत्तरी' के पाठ का क्या प्रयोजन है ? 'तस्सउत्तरी' के पाठ से साधक कायोत्सर्ग करने की प्रतिज्ञा करता है, जिससे वह आत्मा को शरीर की आसक्ति से पृथक् कर (आत्मा को) कषायों से मुक्त कर सके । प्रश्न 39. कायोत्सर्ग की क्या काल मर्यादा है ? उत्तर कायोत्सर्ग की कोई निश्चित काल मर्यादा नहीं है। इसकी पूर्ति 'णमो अरिहंताणं' शब्द बोलकर की जाती है। कायोत्सर्ग काया को स्थिर करके, मौन धारण करके और मन को एकाग्र करके किया जाता है । प्रश्न 40. कायोत्सर्ग किन-किन कारणों से किया जाता है? उत्तर 1. काउस्सगं- "तस्सउत्तरी" पाठ के अनुसार संयम को अधिक उच्च बनाने के लिए, प्रायश्चित्त करने के लिये, विशुद्धि करने के लिए, आत्मा को शल्य रहित करने के लिए और पाप कर्मों का समूल नाश करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। 2. चिंतणत्थं करेमि काउस्सग्गं- “इच्छामि णं भंते" पाठ के अनुसार दिनभर में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में लगे अतिचारों का चिन्तन करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। 3. इच्छामि ठामि काउस्सगं दिवस संबंधी ज्ञानादि के 14 अतिचारों का मन-वचनया से जो सेवन किया गया, उनका कायोत्सर्ग किया जाता है । - 4. देवसियं 'काउस्सग्गं-दिवस संबंधी प्रायश्चित्त की विशुद्धि के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। उत्तर प्रश्न 41 . ' तस्स उत्तरीकरणेणं' में वर्णित कायोत्सर्ग के 5 कारणों के क्रम का क्या हेतु है ? कायोत्सर्ग हेतु तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहिकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि ... ये पाँच कारण प्रतिपादित हैं। उस आत्मा की उत्कृष्टता के लिए अर्थात् ऊपर उठाने के लिए कायोत्सर्ग करना है। शास्त्र में कई स्थानों पर आत्मा के लिए 'वह' और शरीर के लिए 'यह' शब्द प्रयुक्त हुआ है। इन 5 कारणों में कायोत्सर्ग का हेतु प्रकट किया गया है। इनके क्रम को जानने के लिए द्रव्य दृष्टान्त का आलम्बन- जैसे 1. किसी के पैर में काँटा लग गया। 2. उस काँटे की वेदना असह्य हो जाती है और उसको बाहर निकालने की तीव्र भावना जगती है 3. परन्तु गंदे पैर में काँटा नजर
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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