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________________ परिशिष्ट-4] 163} प्रश्न 21. वन्दन करने वाले को अपने बायें से दाहिनी ओर (Left to Right) ही आवर्तन प्रारंभ क्यों करने चाहिए? उत्तर अपने बायें से दाहिनी ओर आवर्तन करना गुरुदेव के प्रति विनम्रता एवं समर्पण भाव का सूचक है, क्योंकि बायाँ अंग विनम्रता का प्रतीक माना जाता है। इसी कारण से नमोत्थुणं का पाठ बोलते समय भी नीचे बैठकर बायाँ घुटना ही खड़ा किया जाता है। अत: वन्दन करने वाले को दोनों हाथ ललाट के बीच में रखकर अपने बायीं ओर से प्रारंभ करते हुए दाहिनी ओर (Left to Right) घुमाते हुए आवर्तन देने चाहिए। पाँच पदों की भाव वन्दना के अन्तर्गत भी तिक्खुत्तो का पाठ बोलते समय आवर्तन इसी प्रकार देने चाहिए। प्रश्न 22. आवर्तन किसका करना चाहिए? उत्तर करयल-परिग्गहियं दसण्ह सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी-(रायप्पसेणीय सूत्र), राजप्रश्नीयसूत्र में सूर्याभ देव के वर्णन से स्पष्ट है कि आवर्तन अपने मस्तक के चारों ओर दोनों हाथों को घुमाकर देना चाहिए, तभी सिरसावत्तं शब्द की सार्थकता सिद्ध होगी। इसीलिए स्थानकवासी परम्परा में मन्दिर अथवा मूर्ति की परिक्रमा रूप आवर्तन नहीं मानकर सिरसावत्तं रूप आवर्तन देना माना जाता है। प्रश्न 23. अपने बायें से दाहिनी ओर दोनों हाथों को घुमाते हुए आवर्तन देना चाहिए, इसके क्या-क्या आगम प्रमाण हैं? निम्नांकित आगम प्रमाणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हमें आवर्तन अपने बायीं (Left) ओर से प्रारंभ करते हुए तथा गुरुदेव के दाहिनी (Right) ओर से प्रारंभ करते हुए दोनों हाथों को घुमाते हुए देने चाहिए1. श्रावक प्रतिक्रमण (आवश्यक) सूत्र-आचार्य श्री आत्मारामजी म.सा., लुधियाना-सप्तम आवृत्ति- विक्रम सम्वत् 2056, पृष्ठ 2, गुरु महाराज के दक्षिण की ओर से लेकर तीन बार प्रदक्षिणा कर के नमस्कार करें। 2. अपनी परम्परा-भाग-1 (आचार्य श्री उमेशमनिजी म.सा.) पष्ठ 129 पर दोनों हाथों से तीन बार वन्दनीय की दाहिनी ओर से बायीं ओर नीचे तक आवर्तन दिया जाता है। 3. रायप्पसेणीय सूत्र-युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी म.सा., पृष्ठ 40 पर, श्रमण भगवान महावीर की दाहिनी ओर से प्रारंभ कर तीन बार प्रदक्षिणा की गई। 4. औपपातिक सूत्र-युवाचार्य मधुकरमुनिजी म.सा., पृष्ठ 104, पर भगवान को तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा कर वन्दन नमस्कार किया। उत्तर
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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