________________
{ 142
[आवश्यक सूत्र वस्त्र, पहनने योग्य कपड़े। विलेवणविहि = विलेपण (लेप) चन्दन आदि । पुप्फविहि = फूल, फूलमाला आदि। आभरणविहि = आभूषण अँगूठी आदि। धूवविहि = धूप, अगर, तगर आदि । पेज्जविहि = पेय, दूध आदि पदार्थों की मर्यादा । भक्खणविहि = मिठाई आदि । ओदणविहि = पकाये हुए चावल आदि । सूपविहि = मूंग, चने की दाल आदि । विगयविहि = दूध, दही, मट्ठा आदि । सागविहि = शाक, सब्जी आदि । महुरविहि = मधुर फल आदि । जीमणविहि = रोटी, पुड़ी, रायता, बड़ा, पकोड़ी आदि । जीमने के द्रव्यों के प्रकार का प्रमाण । पाणियविहि = पीने योग्य पानी। मुखवासविहि = लौंग, सुपारी आदि । वाहणविहि = वाहन (घोड़ा, मोटर आदि)। उवाणहविहि = जूते, मोजे आदि । सयणविहि = सोने-बैठने योग्य पलंग, कुर्सी आदि । सचित्तविहि = जीव सहित वस्तु जैसे नमक आदि । दव्वविहि = द्रव्य की विधि (मर्यादा) । दुविहे = दो प्रकार । पण्णत्ते = कहा गया है। तं जहा = वह इस प्रकार है। भोयणाओ = भोजन की अपेक्षा से । य = और, कम्मओ य = कर्म की अपेक्षा से । भोयणाओ = भोजन सम्बन्धी नियम के । समणोवासएणं = श्रमणोपासक (श्रावक) के । पंच-अइयारा = पाँच अतिचार । सचित्ताहारे = सचित्त वस्तु का भोजन करना । सचित्त-पडिबद्धाहारे = सचित्त (वृक्षादि से) सम्बन्धित (लगे हुए गोंद, पके फल आदि खाना) वस्तु भोगना । अप्पउली-ओसहि-भक्खणया = अचित्त नहीं बनी हुई वस्तु का आहार करना या जिसमें जीव के प्रदेशों का सम्बन्ध हो ऐसी तत्काल पीसी हुई या मर्दन की हुई वस्तु का भोजन करना । दुप्पउली-ओसहि-भक्खणया = दुष्पक्व वस्तु का भोजन करना । तुच्छोसहिभक्खणया = तुच्छ औषधि (जिसमें सार भाग कम हो उस वस्तु) का भक्षण करना । कम्मओ य णं = कर्मादान की अपेक्षा । समणोवासएणं = श्रावक के जो । पण्णरस-कम्मादाणाई = 15 कर्मादान हैं वे । जाणियव्वाई = जानने योग्य हैं। न समायरियव्वाई = परन्तु आचरण योग्य नहीं हैं। तं जहा = वे इस प्रकार हैं । ते आलोउं- = उनकी मैं आलोचना करता हूँ। इंगालकम्मे = ईंट, कोयला, चूना आदि बनाना । वणकम्मे = वृक्षों को काटना । साडीकम्मे = गाड़ियाँ आदि बनाकर बेचना । भाडीकम्मे = गाड़ी आदि किराये पर देना । फोडीकम्मे = पत्थर आदि फोड़कर कमाना । दन्तवाणिज्जे = दाँत आदि का व्यापार करना । लक्खवाणिज्जे = लाख आदि का व्यापार करना । रसवाणिज्जे = शराब आदि रसों का व्यापार । केसवाणिज्जे = दास-दासी, पशु आदि का व्यापार । विसवाणिज्जे = विष, सोमल, संखिया आदि तथा शस्त्रादि का व्यापार करना । जंतपीलणकम्मे = तिल आदि पीलने के यन्त्र चलाना । निल्लंछणकम्मे = नपुंसक बनाने का काम करना । दवग्गिदावणया = जंगल में आग लगाना । सरदह-तलाय-सोसणया = सरोवर तालाब आदि सुखाना । असई-जण-पोसणया = वैश्या आदि का पोषण कर दुष्कर्म से द्रव्य कमाना।।7।।
भावार्थ-मैंने शरीर पोंछने के अंगोछे आदि वस्त्र का, दातौन करने का, आँवला आदि फल से बाल