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परिशिष्ट - 2 ]
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सहायता की हो, विरुद्धरज्जाक्कमे राज्य के विरुद्ध काम किया हो, कूडतुल्ल कूडमाणे = कूड़ा
तोल कूड़ा माप किया हो, तप्पडिरूवगववहारे = वस्तु में भेल संभेल किया हो ।।3।।
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भावार्थ- मैं किसी के मकान में खात लगाकर अर्थात् भींत (खोदकर ) फोड़कर, गाँठ खोलकर, ताले पर कूँची लगाकर अथवा ताला तोड़कर किसी की वस्तु को नहीं लूँगा, मार्ग में चलते हुए को नहीं लूरूँगा, किसी की मार्ग में पड़ी हुई मोटी वस्तु को नहीं लूँगा, इत्यादि रूप से सगे संबंधी, व्यापार संबंधी तथा पड़ी हुई शंका रहित वस्तु के उपरांत स्थूल चोरी को मन, वचन व काया से न करूँगा और न कराऊँगा। यदि मैंने चोरी वस्तु ली हो, चोर को सहायता दी हो या चोरी करने का उपाय बतलाया हो, लड़ाई के समय विरुद्ध राज्य में आया-गया होऊँ, झूठा तोल -माप रखा हो, अथवा उत्तम वस्तु दिखाकर खराब वस्तु दी हो (वस्तु में मिलावट की हो), मैं इन कुकृत्यों (बुरे कमों) की आलोचना करता हूँ। वे मेरे सब पाप निष्फल हों।
चौथा अणुव्रत थूलाओ मेहुणाओ वेरमणं, सदार-संतोसिए अवसेस मेहुणविहिं पच्चक्खामि, जावज्जीवाए देव देवी सम्बन्धी दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा कायसा तथा मनुष्य तिर्यंच सम्बन्धी एगविहं एगविहेणं न करेमि, कायसा एवं चौथा स्थूल स्वदार सन्तोष, परदार' विवर्जन रूप मैथुन विरमण व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं - इत्तरियपरिग्गहिया-गमणे, अपरिग्गहिया-गमणे', अनंगकीडा, परविवाह - करणे, कामभोगातिव्वाभिलासे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥।
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अन्वयार्थ -सदार-संतोसिए अपनी पत्नी में संतोष के सिवाय, अवसेस मेहुणविहिं शेष सभी प्रकार की मैथुन विधि का, पच्चक्खामि त्याग करता हूँ, इत्तरियपरिग्गहिया-गमणे अल्पवय वाली परिग्रहीता के साथ गमन करना । या अल्प समय के लिए रखी हुई के साथ गमन किया हो, अपरिग्गहियागमणे = परस्त्री या सगाई की हुई के साथ गमन करना, अनंगकीडा = काम सेवन योग्य अंगों के सिवाय अन्य अंगों से कुचेष्टा करना, परविवाहकरणे दूसरों का विवाह करवाना, कामभोगा-तिव्वाभिलासे कामभोगों की प्रबल इच्छा करना।14।।
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भावार्थ- चौथे अणुव्रत में स्थूल मैथून से विरमण किया जाता है। मैं जीवनपर्यन्त अपनी विवाहित स्त्री में ही संतोष रखकर शेष सब प्रकार के मैथुन - सेवन का त्याग करता हूँ अर्थात् देव-देवी संबंधी मैथुन का सेवन मन, वचन, काया से न करूँगा और न कराऊँगा । मनुष्य और तिर्यञ्च संबंधी मैथुनसेवन काया से न करूँगा। यदि मैंने इत्वरिका परिगृहीता अथवा अपरिगृहीता से गमन करने के लिए आलाप-संलापादि किया
1. स्त्री को 'सदार' के स्थान पर 'सपइ' व पूर्ण त्यागी को 'सदार-संतोसिए अवसेस - मेहुणविहिं' के स्थान पर 'सव्व- मेहुणविहिं' बोलना चाहिए । 2. स्त्री को 'स्वदार' के स्थान पर 'स्वपति' तथा 'परदार' की जगह 'परपति' बोलना चाहिए।
3.
स्त्री को 'इत्तरियपरिग्गहिया-गमणे' के स्थान पर 'इत्तरियपरिग्गहिय-गमणे' तथा 'अपरिग्गहिया-गमणे' के स्थान पर 'अपरिगहिय-गमणे' बोलना चाहिए।