________________
{ 136
[आवश्यक सूत्र कर भावना भायी हो, 4. आप सूझता होते हुए भी दूसरों से दान दिलाया हो, 5. मत्सर (ईर्ष्या) भाव से दान दिया हो, इन अतिचारों में से मुझे कोई दिवस सम्बन्धी अतिचार लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
संलेखना के पाँच अतिचार का पाठ संलेखना के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं-(1) इस लोक के सुख की कामना की हो, (2) परलोक के सुख की कामना की हो, (3) जीवित रहने की कामना की हो, (4) मरने की कामना की हो, (5) कामभोग की कामना की हो, इन अतिचारों में से मुझे कोई दिवस सम्बन्धी अतिचार लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।
99 अतिचारों का (समुच्चय) पाठ इस प्रकार 14 ज्ञान के, 5 समकित के, 60 बारह व्रतों के, 15 कर्मादान के, 5 संलेखना के इन 99 अतिचारों में से किसी भी अतिचार का जानते, अजानते, मन, वचन, काया से सेवन किया हो, कराया हो, करते हए को भला जाना हो तो अनन्त सिद्ध केवली भगवान की साक्षी से जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।
तस्स सव्वस्स का पाठ मूल- तस्स सव्वस्स देवसियस्स', अइयारस्स, दुब्भासिय-दुच्चिन्तिय
दुच्चिट्ठियस्स आलोयंतो पडिक्कमामि। संस्कृत छाया- तस्य सर्वस्य दैवसिकस्य अतिचारस्य दुर्भाषित-दुश्चिन्तित-दुश्चेष्टितस्य
आलोचयन् प्रतिक्रामामि। अन्वयार्थ-तस्स सव्वस्स देवसियस्स = उन सब दिवस सम्बन्धी, अइयारस्स = अतिचारों का जो, दुब्भासिय-दुच्चिन्तिय- = दुर्वचन व बुरे चिन्तन से, दुच्चिट्ठियस्स = तथा कायिक कुचेष्टा से किये गये हैं, आलोयंतो पडिक्कमामि = उन अतिचारों की आलोचना करता हुआ उनसे निवृत्त होता हूँ।
विवेचन-उन सब दिवस संबंधी अतिचारों का जो दुर्वचन व बुरे चिंतन से तथा कायिक कुचेष्टा से किये गये हैं, उन अतिचारों की आलोचना करता हुआ उनसे निवृत्त होता हूँ।
___ बारह व्रत अतिचार सहित 1. पहला अणुव्रत-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, त्रसजीव, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, जान के, पहिचान के, संकल्प करके, उसमें सगे सम्बन्धी व स्व शरीर के भीतर में पीड़ाकारी, सापराधी को छोड़कर निरपराधी को आकुट्टी की बुद्धि से हनने का पच्चक्खाण, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं