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________________ परिशिष्ट-1] 119} अनन्त बलवीर्य-अनन्त आत्म सामर्थ्य यह अन्तराय कर्म के क्षय से प्राप्त होता है। दिव्य ध्वनि-तीर्थङ्कर भगवान की वाणी एक योजन तक सुनाई देती है और सभी प्राणियों के लिए उनकी भाषा में परिणमती है। भामण्डल-सूर्य से भी अधिक प्रकाश के समान चारों ओर प्रकाश का आवरण। स्फटिक सिंहासन-जिस पर तीर्थङ्कर (समवसरण में) विराजते हैं। देवदुन्दुभि-जिसे देवता आकाश से बजाते हैं। कुसुमवृष्टि-देवकृत अचित्त पुष्पों की वर्षा होती है। छत्र-भगवान के एक के ऊपर एक ऐसे 3 छत्र होते हैं जो भगवान को 3 लोक का नाथ होना सूचित करते हैं। दो चामर-जिसे देव दोनों ओर से बींजते हैं। अठारह दोष पंचन्तराया मिच्छत्त-मन्नाणमविरइ कामो । हास छग राग दोसा, णिद्दा अट्ठारस इमे दोसा ।। (1) दानान्तराय, (2) लाभान्तराय, (3) भोगान्तराय, (4) उपभोगान्तराय, (5) वीर्यान्तराय, (6) मिथ्यात्व, (7) अज्ञान, (8) अविरति, (9) काम, (10) हास्य, (11) रति, (12) अरति, (13) भय, (14) शोक, (15) जुगुप्सा, (16) राग, (17) द्वेष और (18) निद्रा । अरिहन्त भगवान इन 18 दोषों से रहित होते हैं। चौंतीस अतिशय-तीर्थङ्करों के अतिशय (अति शेष) चौंतीस हैं, वे इस प्रकार-(1) उनके शरीर के केश, दाढ़ी, मूंछ, रोम और नख अवस्थित रहते हैं न बढ़ते है, न घटते हैं। (2) उनका शरीर रोग रहित और निरूपलेप (रज और स्वेद रहित) होता है। (3) उनका माँस शोणित दूध की तरह पाण्डुर (सफेद) होता है। (4) उनके उच्छ्वास और नि:श्वास कमल और नीलोत्पल की तरह सुगन्धित होते हैं। (5) उनका आहार और निहार दोनों प्रच्छन्न होते हैं, माँस (चर्म) चक्षु द्वारा दृष्ट नहीं होते । छद्मस्थों को दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। (6) उनके आगे-आगे आकाश में धर्म चक्र चलता है। (7) उनके ऊपर आकाशगत छत्र होता है। (8) उनके प्रकाशमय श्वेतवर चामर ढलते हैं। (9) उनके आकाश जैसा स्वच्छ स्फटिकमय पादपीठ सहित सिंहासन होता है। (10) उनके आगे-आगे आकाश में हजारों लघु पताकाओं से शोभित इन्द्रध्वज चलता है। (11) जहाँ-जहाँ अरिहन्त भगवन्त ठहरते हैं, बैठते हैं, वहाँ-वहाँ तत्क्षण पत्रों से भरा हुआ और पल्लव से युक्त छत्र, ध्वजा, घंटा और पताका सहित अशोक वृक्ष प्रकट हो जाता है। (12) मस्तक के कुछ पीछे
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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