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________________ परिशिष्ट-1] 115) (3) प्राणेन्द्रिय- संयम भावना तीसरी भावना घ्राणेन्द्रिय संवर है। मनोहर उत्तम सुगन्धों में आसक्त नहीं होना चाहिये। वे सुगन्ध कौनसे हैं ? जल और स्थल में उत्पन्न सरस पुष्प, फल, भोजन, पानी, कमल का पराग, तगर, तमाल पत्र, छाल, दमनक, मरुआ, इलायची, गोशीर्ष नामक सरस चन्दन, कपूर, लोंग, अगर, कुंकुम (केसर), कक्कोल, वीरण (खस), श्वेत चन्दन ( मलय चन्दन), उत्तम गन्ध वाले पदार्थों के मिश्रण से बने हुए, धूप की सुगन्ध, ऋतु के अनुसार उत्पन्न पुष्प जिनकी गंध दूर तक फैलती है। इसी प्रकार के अन्य मनोज्ञ एवं श्रेष्ठ गंध वाले पदार्थों की गन्ध पर साधु को आसक्त नहीं होना चाहिये यावत् उन गन्धों का स्मरण एवं चिन्तन भी नहीं करना चाहिये । - घ्राणेन्द्रिय से अप्रिय लगने वाली दुर्गन्ध के प्रति द्वेष नहीं करना चाहिये। वे दुर्गन्धित पदार्थ कैसे हैं ? मरे हुए सर्प का कलेवर, मरा हुआ घोड़ा, हाथी, बैल, भेड़िया, कुत्ता, शृगाल, मनुष्य, बिल्ली, सिंह, चीता आदि के शव सड़ गए हों, इनमें कीड़े पड़ गए हों, जिनकी दुर्गन्ध अत्यन्त असह्य एवं दूर तक फैली हो और अन्य भी दुर्गन्धमय पदार्थों की गंध प्राप्त होने पर साधु उस पर द्वेष नहीं करे यावत् अपनी घ्राणेन्द्रिय को वश में रखता हुआ धर्म का आचरण करे। | (4) रसनेन्द्रिय-संयम-भावना- साधु रसनेन्द्रिय द्वारा मन भावते एवं उत्तम रसों का आस्वादन करके आसक्त नहीं बने । वे रस कौनसे हैं ? घृत में तलकर बनाये गए घेवर, खाजा आदि और विविध प्रकार के भोजन पान, गुड़ और शक्कर से बनाए हुए तिलपट्टी, लड्डू, मालपुआ आदि भोज्य पदार्थों में, अनेक प्रकार लवणयुक्त (नमकीन, मसालेदार ) वस्तुओं में और भी 18 प्रकार के शाक और विविध प्रकार के भोजन में तथा वे द्रव्य जिनका वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श उत्तम हैं और उत्तम वस्तुओं के योग से संस्कारित किए गए हैं, इस प्रकार के सभी उत्तम एवं मनोज्ञ रसों में साधु आसक्त नहीं, यावत्, उनका स्मरण चिन्तन नहीं करे । रसनेन्द्रिय के द्वारा अमनोज्ञ अरुचिकर बुरे रसों का आस्वाद लेकर उनमें द्वेष न करे। वे अनिच्छनीय रस कैसे हैं ? अरस, विरस, शीत (ठंडा), रूक्ष और निस्सार आहार पानी विकृत रसवाला, सड़ा हुआ बिगड़ा हुआ, घृणित, अत्यन्त विकृत बना हुआ जिससे अत्यन्त दुर्गन्ध आ रही है ऐसा तीखा, कड़वा, कषैला, खट्टा और अत्यन्त नीरस आहार पानी और इसी प्रकार के अन्य घृणित रसों पर साधु द्वेष नहीं करे, दुष्ट नहीं होवे और रसना पर संयम रखकर धर्म का पालन करे । (5) स्पर्शेन्द्रिय- संयम - भावना - साधु स्पर्शेन्द्रिय से मनोज्ञ और सुखदायक स्पर्शों का स्पर्शकर उनमें आसक्त नहीं बने। वे मनोज्ञ स्पर्श वाले द्रव्य कौन से हैं? जिनमें से जल कण बरस रहे हैं ऐसे मंडप (फव्वारा युक्त), हार (मालाएँ), श्वेत चन्दन, निर्मल शीतल जल, विविध प्रकार के फूलों की शय्या, खरे मोतियों की माला, कमल की नाल इनका स्पर्श करना, रात्रि में निर्मल चाँदनी में बैठकर, सोकर या विचरण
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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