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________________ { 90 [आवश्यक सूत्र विवेचन-(पूर्वार्ध सूत्र) सूर्योदय से लेकर दो प्रहर तक चारों आहार का त्याग करने को पुरिमड्ढ बोलना। इसमें एक आगार विशेष है-महत्तरागारेणं (महत्तराकार) 'महत्तरप्रत्याख्यान पालनवशाल्लभ्यनिर्जरापेक्षया बृहत्तरनिर्जरालाभभूतं, पुरुषान्तरेण साधयितुमशक्यं ग्लान: चैत्यसंघादिप्रयोजनं तदेव आकारः महत्तराकारः।' अर्थात् विशेष निर्जरा आदि ध्यान में रखकर रोगी आदि की सेवा के लिए अथवा श्रमण संघ के किसी अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए गुरुदेव आदि महत्तर पुरुष की आज्ञा पाकर निश्चित समय के पहले ही प्रत्याख्यान पार लेना । गृहस्थ के लिए परस्पर कलहादि की निवृत्ति के लिए पंच समाज आदि एकत्रित हुए हों, पंचों की तरफ से दोनों को शामिल बैठाकर भोजन आदि के कहने पर पुरिमड्ड आदि पच्चक्खाण वाला समय के आने के पूर्व भी उन महत्तरों (बड़े पुरुषों) के कहने से विशिष्ट लाभ का कारण समझकर आहारादि करने पर व्रत भंग नहीं होता है। प्रत्याख्यान के समान ही अपार्ध प्रत्याख्यान भी होता है। अपार्ध प्रत्याख्यान का अर्थ है-तीन प्रहर दिन चढ़े तब तक आहार ग्रहण न करना । अपार्ध प्रत्याख्यान ग्रहण करते समय ‘पुरिमड्ढे के स्थान में अवड्ड' पाठ बोलना चाहिये। 4. एगासण-सूत्र (एकासना) एगासणं पच्चक्खामि तिविहं पि आहारं असणं, खाइम, साइमं, अण्णत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेण, सागारियागारेणं, आउंटणपसारणेणं, गुरु-अब्भुट्ठाणेणं, (पारिट्ठावणियागारेणं), महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। भावार्थ-मैं एकाशन तप स्वीकार करता हूँ। फलत: अशन, खादिम और स्वादिम-इन तीनों प्रकार के आहारों का प्रत्याख्यान करता हूँ। इस व्रत के आगार आठ हैं, यथा-(1) अनाभोग, (2) सहसागार, (3) सागरिकाकार, (4) आकुञ्चन-प्रसारण, (5) गुर्वभ्युत्थान, (6) पारिष्ठापनिकाकार, (7) महत्तराकार, (8) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार। उक्त आठ आगारों के सिवा आहार का त्याग करता हूँ। विवेचन-पौरुषी या पूर्वार्ध के बाद दिन में एक बार भोजन करना एकाशन कहलाता है। एकाशन का अर्थ है-एक अशन अर्थात् दिन में एक बार भोजन करना अथवा एक + आसन अर्थात् एक आसन पर बैठकर भोजन करना । एकाशन में अचित्त आहार पानी ही ग्रहण करना कल्पता है। तिविहार एकाशन करता है वह भोजन करने के बाद इच्छानुसार अचित्त पानी पी सकता है। जो चौविहार एकासन करता है, वह भोजन करने के बाद उठ जाने पर पानी नहीं पी सकता है। इसमें 8 आगार हैं। पूर्व में नहीं आए आगारों के अर्थ इस प्रकार हैं, सागारियागारेणं (सागारिकाकार)-सागारिक गृहस्थ को कहते हैं । गृहस्थ के आ जाने पर उसके मूल
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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