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आवश्यक सूत्र का महत्त्व इस बात से भी प्रकट होता है कि इस आगम पर जितने व्याख्या ग्रन्थ लिखे गये हैं अन्य किसी पर इतने नहीं लिखे गये।
व्याख्या साहित्य
(1) आवश्यक निर्युक्ति - आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने आगमों के शब्दों को स्पष्ट करने के लिए दस आगमों पर नियुक्तियाँ लिखी हैं, जिनमें आवश्यक नियुक्ति प्रथम व सबसे महत्त्वपूर्ण है। नियुक्तियाँ संक्षिप्त शैली में पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करती है। आवश्यक नियुक्ति में कितनी गाथाएँ हैं इस बात को लेकर बहुत मतभेद है - (1) हारिभद्रीय टीका में 1,055 (2) मलयगिरी कृत टीका में 1,067 (3) स्वोपज्ञ में 735 एवं (4) दीपिका में 1,062 जैन विश्वभारती द्वारा प्रकाशित में 6801 " अन्यत्र गाथाओं की संख्या अधिक होने का कारण इनमें भाष्यादि की गाथाएँ मिल गई हैं, उन्हें नियुक्ति के साथ जोड़ देने से ऐसा हुआ है।" परिशिष्ट गाथा समीकरण (आवश्यक नियुक्ति खण्ड-1, जैन विश्व भारती, लाडनूं)
विषय-वस्तु-5 ज्ञान का भेद-प्रभेद सहित विस्तृत विवेचन, श्रुतज्ञान में सर्वप्रथम स्थान सामायिक व अंत में बिंदुसार को दिया है। सामायिक के अधिकारी कौन? शिष्य के गुण दोषों की चर्चा, व्याख्या - विधि के 26 उपोद्घात द्वार, भगवान महावीर के पूर्वभवों का वर्णन, भगवान ऋषभ के पूर्वभव, इक्ष्वाकु वंश की स्थापना तथा कुलकरों की उत्पत्ति का रोचक वर्णन, भगवान ऋषभ के सर्वागीण जीवन का परिचय, ऋषभ के साथ-साथ अन्य तीर्थकरों से संबंधित वर्ण, प्रमाण, संहनन आदि 21 द्वारों का वर्णन किया गया है।
ऋषभ के बाद महावीर के जीवन के विविध प्रसंग, साधनाकाल के कष्ट आदि के स्थान एवं व्यक्ति के नाम सहित विस्तृत विवेचन है। महावीर के जीवन को स्वप्न, गर्भापहार आदि 13 द्वारों में निरूपित किया है। कैवल्य प्राप्ति के बाद महासेन उद्यान में दूसरा समवशरण हुआ जिसमें इन्द्रभूति आदि 11 ब्राह्मण आदि शिष्य सम्पदा के साथ शंकाओं का निराकरण होने पर कैसे प्रव्रजित हुए इसका वर्णन हुआ है। नय के प्रसंग में आर्य वज्र के जीवन-प्रसंगों का विस्तृत उल्लेख है तथा आर्य रक्षित के जीवन प्रसंग के साथ उन्होंने चारों अनुयोगों का पृथक्करण किया, इसका भी वर्णन प्राप्त है। निद्धवों का सम्पूर्ण वर्णन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके बाद सामायिक, सामायिक के भेद, उसके अधिकारी की योग्यता, सामायिक कहाँ आदि विविध द्वारों का समाधान दिया गया है। अंतिम निर्युक्ति द्वार में सामायिक के निरुक्तों का उल्लेख कर सर्वविरति के 8 निरुक्त एवं उनसे संबंधित आठ ऐतिहासिक पुरुषों के जीवन-प्रसंगों का संकेत दिया गया है, जिन्होंने समता का विशेष अभ्यास किया था।
सामायिक का प्रारंभ नमस्कार मंत्र से होता है अत: निर्युक्तिकार ने अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इनका विवेचन करते हुए नमस्कार की उत्पत्ति, पद, पदार्थ, प्ररूपणा, प्रसिद्धि, क्रम, प्रयोजन, फल आदि 11 द्वारों का निरुपण किया है। इसके बाद करण, भंते, सामायिक, सर्व सावध, योग, प्रत्याख्यान और यावज्जीवन आदि सामायिक के पदों की व्याख्या की गई है। कहा जा सकता है कि इस नियुक्ति में सामायिक पर तो सांगोपांग विवेचन मिलता ही है, साथ ही अन्य विषयों पर भी विशिष्ट जानकारी प्राप्त होती है।