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[आवश्यक सूत्र आयरिए-उवज्झाए का पाठ आयरिय-उवज्झाए-, सीसे साहम्मिए कुल-गणे य । जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि।।1।। सव्वस्स समण-संघस्स, भगवओ अंजलिं करिअ सीसे। सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयंपि।।2।। सव्वस्स जीव-रासिस्स, भावओ धम्म-निहिय-नियचित्तो।
सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयंपि।।3।। संस्कृत छाया- आचार्योपाध्यायान् शिष्यान् साधर्मिकान् कुलगणान् च।
ये मया केचित् कषाया:, सर्वान् त्रिविधेन क्षमयामि।।1।। सर्वं श्रमण-संघ, भगवन्तं अञ्जलिं कृत्वा शिरसि। सर्वं क्षमयित्वा, क्षाम्यामि सर्वं अहमपि।।2।। सर्वं जीवराशिं, भावतः धर्मे निहितनिजचित्तः।
सर्वं क्षमयित्वा, क्षाम्यामि सर्वं अहमपि।।3।। अन्वयार्थ-आयरिय = आचार्यों के प्रति, उवज्झाए = उपाध्यायों के प्रति, सीसे = शिष्यों के प्रति, साहम्मिए = साधर्मिकों के प्रति, कुल = एक आचार्य के शिष्य समुदाय के प्रति, गणे य = गण समूह के प्रति, जे = जो, मे = मैंने, केई = कुछ, कसाया = क्रोध आदि कषाय किए हों तो, सव्वे = सबको, तिविहेणं = तीन योग (मन, वचन, काया) से, खामेमि = खमाता हूँ। क्षमा चाहता हूँ, (इसी प्रकार) सव्वस्स = सभी, समण-संघस्स = श्रमण-संघ-साधु समुदाय (चतुर्विध संघ), भगवओ = भगवान को, अंजलिं करिअ = दोनों हाथ जोडकरके.सीसे = शीश पर लगाकर.सव्वं = सबको,खमावडत्ता = खमा करके, खमामि = खमता हूँ, क्षमा करता हूँ, सव्वस्स = सबको, अहयंपि = मैं भी, सव्वस्स = सभी, जीव-रासिस्स = जीव राशि से, भावओ = भाव से, धम्म-निहिय-नियचित्तो = धर्म में चित्त को स्थिर करके, सव्वं = सबको, खमावइत्ता = खमा करके, खमामि = खमता हूँ, क्षमा करता हूँ।
भावार्थ-आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, साधर्मिक, कुल और गण, इन सबके प्रति मैंने जो कुछ कषाय किये हों, उन सबसे मैं मन, वचन और काया से क्षमा चाहता हूँ।।1।।
अञ्जलिबद्ध दोनों हाथ जोड़कर समस्त पूज्य मुनिगण से मैं अपराध की क्षमा चाहता हूँ और मैं उन्हें क्षमा करता हूँ।।2।।