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जीवन्मृतः कोऽस्तिनिरुद्यमो यः॥ भावार्थ:-वे पापात्मा जीते जी मरेहुवे मुरदे के समान हैं जो उद्योगरूपी पुरुषार्थ
से रहित हैं। प्रश्नोत्तरी में स्वामी शंकराचार्य जी आज्ञा देते हैं:
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यच्चामोघा वरमधिगुणे नाधमे लब्धकामा॥ (मेघदूत) भावार्थ:- शुभगुण संपन्न महावंशमें उत्पन्न भये महापुरुषके समीप याचना करने पर भी निष्फल होजाय तो भी श्रेष्ठ है, परंतु नीच के समीप याचना करके पूर्ण मनोरथ होना भी न होने के समान है।
॥ श्री पशुपतये नमः॥ र सत्यसनातन दानदर्पण र
अर्थात्बलिदानपत्र नं०३
जिसको श्रीमत् स्वामी परमानन्द भारतभिक्षु
जे नप है अधिकार ले, करे न पर-उपकार । पुनि ताके अधिकारको, पुनः पुनः धिकार॥
विचाररूपी तराजू पर तौल कर
देखने के लिये देवता, असुर और मनुष्य का
कर्तव्य दिखाया है।
डॉ० धारशी गुलाबचंद संघाणी H.L.M.S. के प्रबन्ध से
सुखदेवसहाय जैन प्रिंटिंगप्रेस, अजमेर में मुद्रित
माघ शुक्ला बसंतपंचमी सं०१९७१ धर्म के नाम से होने वाले अत्याचारों का रोकना ही इसका मूल्य है.'
तुलसी हाय गरीबकी कभी न निष्फल जाय। मरी खालके स्वास से सार भस्म हो जाय ॥