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________________ सहजता उसी के अनुसार चलता है। वापस ऐसा कुछ हो जाता है न, तो वापस बदल जाता है। दादाश्री : बदल जाता है लेकिन वह तो मन बदल जाता है, हम क्यों बदल जाएँ ? हम तो वही के वही है न! आज्ञा पालन में दखल किसकी? प्रश्नकर्ता : आज्ञा पालन के लिए सहज क्यों नहीं हो जाता? दादाश्री : वह तो खुद की कमज़ोरी है। प्रश्नकर्ता : क्या कमज़ोरी है? दादाश्री : कमज़ोरी, जागृति की, थोड़ा-बहुत उपयोग रखना पड़ता है न? एक आदमी लेटे-लेटे विधि कर रहा था। वैसे तो बैठे-बैठे, जागते हुए करने में पच्चीस मिनट लगते हैं, लेकिन लेटे-लेटे करने में उसे ढाई घंटे लग गए। क्यों? प्रश्नकर्ता : बीच में झपकी आ जाती है। दादाश्री : नहीं! आलस आ जाता है न, इसलिए फिर कहाँ तक बोला, वह वापस भूल जाता है। दोबारा फिर से बोलता है। अपना विज्ञान इतना अच्छा है। कुछ भी दखल हो, ऐसा नहीं है। थोड़ी-बहुत रहती प्रश्नकर्ता : एट ए टाइम पाँच आज्ञा का पालन करना, इतना सरल नहीं है न! वह (आलस) मन को खींच लेता है! दादाश्री : ऐसे रास्ते में चलते-चलते शुद्धात्मा देखते हुए जाए, उसमें कैसी कठिनाई? क्या कठिन है? यदि डॉक्टर ने कहा हो कि आज से आठ-दस दिनों तक सीधे हाथ से खाना मत खाना तो उसे याद रखना इतना ही काम है न? अतः थोड़ी-बहुत जागृति रखना, बस इतना ही काम है न? जागृति नहीं रहती इसलिए दूसरा हाथ उसमें चला जाता है। अनादि का उल्टा अभ्यास है।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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