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प्रस्तावना
परम पूज्य दादाश्री की ज्ञानवाणी का संकलन अर्थात् व्यवस्थित शक्ति से संयोगों द्वारा निमित्तों की संकलना का परिणाम । ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री को अनंत जन्मों के परिभ्रमण से हुए अनेक अनुभव उनकी निर्मोही दशा की वजह से उन्हें तादृश बर्ताते थे। उनका इस जन्म में, निमित्त के अधीन सहज ज्ञानवाणी के निकलने से आत्मा और अनात्मा
जोड़ पर के गुह्य रहस्यों के सूक्ष्म स्पष्टीकरण मिलते गए । पूज्य नीरू माँ ने इस संसार पर असीम कृपा की, कि परम पूज्य दादाश्री के एकएक शब्द को टेपरिकॉर्डर के द्वारा संग्रहित (रिकॉर्ड) किया।
पूज्य नीरू माँ ने दादाश्री की वाणी का संकलन करके चौदह आप्तवाणियाँ तथा प्रतिक्रमण, वाणी का सिद्धांत, माँ-बाप बच्चों का व्यवहार, पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार, आप्तसूत्र, हिन्दी आप्तवाणी, निजदोष दर्शन से निर्दोष, पैसों का व्यवहार और समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य और साथ ही उनके संक्षिप्त, अनेक पुस्तकें बनाई । और अब, उनकी स्थूल देह की अनुपस्थिति में यह जवाबदारी आ गई है लेकिन बहुत से ब्रह्मचारी भाई-बहनों तथा सेवार्थी महात्मागण के आधार से पुस्तकों के लिए इस वाणी के संकलन की प्रक्रियाएँ आगे चल रही हैं।
जैसे कारखाने में सब सामान इकट्ठा होकर फाइनल प्रोडक्ट बनाता है, उसी प्रकार से इस ज्ञानवाणी के कारखाने में दादा की ज्ञानवाणी की पुस्तकें बनती हैं। बहुत से महात्माओं की गुप्त मौन सेवा से, दादाश्री की वाणी कैसेट में से लिखी जाती है। वाणी लिखने के बाद उसकी चेकिंग होती है और फिर रिचेकिंग करके, वाणी की शुद्धता को ज्यों का त्यों बनाए रखने का पूर्ण प्रयास किया जाता है । फिर सब्जेक्ट के अनुसार कलेक्शन होता है, फिर उस कलेक्शन का विविध प्रकार के दृष्टिकोण वाली बातों में विभाजन होता है । परम पूज्य दादाश्री का सत्संग एक ही व्यक्ति के साथ चल रहा हो, वैसे भावपूर्वक अज्ञान से, ज्ञान और केवलज्ञान तक के सभी जोड़ों का पूर्ण स्पष्टीकरण करती वाणी का संकलन होता है। अंत में प्रूफ रीडिंग होकर प्रिंटिंग होती है। इसमें सूक्ष्म
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