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________________ सहजता दादाश्री : अगर आत्मा सहज हो जाएगा तो शरीर अपने आप सहज हो जाएगा, यानी वह क्या कहता है? यदि यह व्यवहार आत्मा सहज हो जाए तो शरीर सहज हो ही जाएगा लेकिन मूल आत्मा तो सहज ही है। यह सारी झंझट इस व्यवहार आत्मा की ही है। असहजता के लिए ज़िम्मेदार कौन? प्रश्नकर्ता : आपने ऐसा कहा कि आत्मा भी सहज है और प्रकृति भी सहज है। दादाश्री : नहीं! वह तो समकित होने के बाद। इस मिथ्यात्व की वजह से प्रकृति असहज हो जाती है। प्रकृति तो अपना फोटो है। आइने में देखने पर मुँह चढ़ा हुआ दिखाई देता है। वह प्रकृति है, तो क्या प्रकृति का दोष है? प्रश्नकर्ता : प्रकृति का ही दोष है। दादाश्री : नहीं! भीतर व्यवहार आत्मा में स्थिरता, सहजता नहीं आई है। यदि व्यवहार आत्मा सहज हो जाए तो प्रकृति सहज हो जाती है, उसका मुँह वगैरह सब अच्छा दिखाई देता है। प्रश्नकर्ता : दादा, आत्मा सहज नहीं हुआ है, यदि मुँह चढ़ा हुआ है, तो जिस आत्मा की आपने बात की , वह प्रतिष्ठित आत्मा है न? दादाश्री : प्रतिष्ठित आत्मा है वह बात सही है, लेकिन प्रतिष्ठित आत्मा अर्थात् व्यवहार आत्मा। जब तक प्रतिष्ठित आत्मा का चलन है न, तब तक व्यवहार आत्मा का ही दोष माना जाएगा। प्रतिष्ठित आत्मा प्रतिनिधि के समान है इसलिए अंत में ज़िम्मेदारी उसी की होगी। किसकी होगी? प्रश्नकर्ता : मूल की। दादाश्री : नहीं। वह (मूल) खुद ऐसा नहीं है लेकिन उसके प्रतिनिधि ऐसा करते हैं। इसका जोखिम किसके सिर?
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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