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________________ ११८ सहजता दादाश्री : तूने यह प्रयोग करके नहीं देखा? एक दिन के लिए लगाम छोड़ दो न, तब दूसरे दिन पता चलेगा कि यह तो बल्कि अच्छी तरह से चला। लगाम पकड़ने से ही बिगड़ता है। सहज होने के लिए लगाम छोड़ दो प्रश्नकर्ता : लगाम छोड़ देनी है वह ठीक से समझ में नहीं आया। लगाम छोड़ देनी अर्थात् क्या? दादाश्र : जैसे अपने घर के बैल हों, जिन्होंने अपना घर देखा है, उन बैलों को लगाम पकड़कर खिंचते रहे और बेचारों को परेशान करे, उसके बजाय छोड़ दो न, वे घर ही पहुँचाएँगे। वे गढ्ढे में नहीं गिराएँगे। यदि उन्हें गलत लगेगा तो तुरंत घूमकर जाएँगे, क्योंकि उन्हें खुद की सेफसाइड देखनी है न? और अगर कोई मूर्ख हाँकेगा तो मार डालेगा। इसी तरह जो उदयकर्म है न, वह फर्स्ट क्लास रास्ता ढूँढ निकालता है। यह हाँकने वाला (अहंकार) तो उल्टी दिशा में हाँकता है। फिर सब बिगाड़ देता है। समझ ही नहीं है न! इसलिए हम कहते हैं कि तू चुपचाप लगाम छोड़ दे न! एक दिन चलता है या नहीं, वह देख तो सही? तब उसे विश्वास हो जाएगा, तो फिर दूसरे दिन भी चलेगा। प्रश्नकर्ता : तो उस दिन सहज रूप से जो चलता हो, उसे चलने देना है? दादाश्री : लगाम नहीं पकड़नी है। जो चल रहा है वह ठीक है। तू जो सहज शब्द समझ रहा है, वह सहज अलग प्रकार का है। अभी यहाँ सहज नहीं कहलाता। सहज तो अंतिम स्टेशन की बात है। प्रश्नकर्ता : नहीं, तो दादा, उदयकर्म के अनुसार अपने आप ही जो चल रहा हो, उसी अनुसार सब चलने देना है? दादाश्री : उदयकर्म जैसा करवाते हैं उसी अनुसार करने देना है। व्यवस्थित का अनुभव होने के लिए... प्रश्नकर्ता : तो इसमें कर्ता-अकर्ता, दोनों भाव को किस तरह से सिद्ध करना है?
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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