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________________ ९८ सहजता डर या संकोच रहित, वह सहज प्रश्नकर्ता : तो क्या ऐसे रास्ते पर नाचते-नाचते जाएँ तो वह सहज हुआ कहलाएगा ? दादाश्री : सहज ही हुआ कहलाएगा। सहज अर्थात् क्या? लोगों से डरना नहीं। किसी से नहीं डरना, उसे सहज कहते हैं। अपने यहाँ एक भाई आते हैं, एक दिन मैंने उन्हें फूलों की माला पहनाई और कहा, 'लो, अब इस माला को पहनकर यहाँ से घर तक जाओ ।' यानी, यह तो आज्ञा हो गई इसलिए अब उनके पास आज्ञा का पालन किए बगैर कोई चारा नहीं, तो फिर क्या हुआ ? जैसे ही वे गली में से बाहर निकले तो उनके मन में ऐसा लगा कि कोई देख लेगा तो ? इसलिए उन्होंने क्या किया कि ऐसा रास्ता ढूँढ निकाला कि जिसमें माला नहीं निकालनी पड़े और आज्ञा का पालन भी हो जाए और लोगों के शिकंजे में नहीं आए। इसलिए वहाँ से ही उन्होंने रिक्शा किया और आँखें बंद करके बैठ गए और घर के दरवाज़े के सामने रिक्शा रुकवाया। फिर दूसरे दिन मुझे यह सब बताया। तब मैंने कहा, 'किसलिए डरते हो ? इन गाय-भैंसों से क्यों नहीं डरते ? उनमें भी ऐसा ही आत्मा है और इनमें भी ठीक वैसा ही है । इनसे क्यों नहीं डरते ?' तब कहने लगे 'वहाँ पर शर्म नहीं आती।' तब मैंने कहा, ‘उनमें और इनमें फर्क नहीं है । सिर्फ देखने में मनुष्य दिखाई देता है, उतना ही फर्क है । ' प्रश्नकर्ता : लेकिन फिर भी ऐसा कुछ होता है तो प्रकृति नहीं करने देती, तब क्या करना चाहिए ? दादाश्री : हाँ ! यदि नहीं करने दें तो आपको उसे भी जानना चाहिए। आपकी इच्छा है और नहीं करने देती, उसके लिए आप ज़िम्मेदार नहीं हो। यात्रा में तो हर एक स्टेशन पर यह सब, ऐसे गरबा करते थे । फिर भी थकान नहीं लगती । मुक्त मन से, किसी के दबाव में आने की ज़रूरत नहीं। किसी की कैसी शर्म ? यदि शर्म लगने लगे तो आपको समझना नहीं चाहिए कि चंदूभाई कच्चे पड़ रहे हैं ।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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