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________________ सहजता दादाश्री : नहीं! यदि आप बेशर्म हो जाओगे तो फिर नीचे गिर जाओगे। आपको तो ज्ञाता-दृष्टा बनना है। प्रश्नकर्ता : तो क्या हमें इमोशनलपना छोड़ देना है ? दादाश्री : छोड़ना नहीं है। इस तरह से कुछ नहीं छूटता। यदि ज्ञाता-दृष्टा रहेंगे तो सब छूट जाएगा। छोड़ने से नहीं छूटता। ज्ञाता-दृष्टा रहोगे न, तो छूट जाएगा। एक ही दिन, रविवार के दिन, एक दिन शुद्धात्मा की कुर्सी पर बैठना, फिर सबकुछ अच्छा चलेगा! सिर्फ, ज्ञाता-दृष्टा रहना है। चंदूभाई क्या कर रहे हैं, उन्हें देखते रहना है। प्रश्नकर्ता : अब चंदूभाई गलत करे या सही करे, उन्हें देखना है? दादाश्री : गलत करते हैं या नहीं, वह गलत या सच होता ही नहीं। सच्चा-झूठा समाज के अधीन है। भगवान के वहाँ सच-झूठ नहीं है। भगवान के वहाँ फायदा-नुकसान भी नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो समाज और व्यवहार के अधीन हमारा जो भाव है, हमारे जीवन का व्यवहार भाग, उसे कैसा रखना है? दादाश्री : व्यवहार तो ऐसा रखना है कि लोग उसकी प्रसंशा करे, उसे आर्दश कहे, ऐसा रखो। लोग कहे कि, 'भाई, चंदूभाई की बात नहीं करना, वे बहुत अच्छे व्यक्ति हैं।' जबकि ये तो खुद के घर में ही अच्छे नहीं दिखते। भाई, अगर पड़ोसी अच्छा न कहे तो हर्ज नहीं लेकिन घर में भी अच्छे नहीं दिखते। प्रश्नकर्ता : लेकिन उसका क्या उपाय है? दादाश्री : यह जो बताया वही, ज्ञाता-दृष्टा रहना। प्रश्नकर्ता : हम ज्ञाता-दृष्टा तो रहते हैं लेकिन यदि चंदूभाई से उल्टे-सीधे काम हो जाते हो और परिणाम गलत आते हो, तो उन्हें सुधारने के लिए हमें क्या करना है?
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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