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सहजता
ऊपर का ज्ञान रहता है। हमारी बुद्धि खत्म हो चुकी है। हम में बुद्धि नहीं है, हम अबुध हो गए हैं। यह हमारी सहजता ज्ञान पूर्वक की है।
प्रश्नकर्ता : सभी प्रकार की कुशलता प्राप्त करने के लिए बुद्धि चाहिए या फिर सहजता से भी प्राप्त हो जाती है ?
दादाश्री : सहजता से ज़्यादा प्राप्त होती है। बुद्धि से उलझनें होती हैं, उसके बावजूद भी बुद्धि व्यर्थ नहीं है। बुद्धि बाद में हल ला देती है। सहजता के बजाय ज्यादा अच्छा हल ला देती है लेकिन पहले बहुत उलझन में डाल देती है। जबकि सहजता बहुत हितकारी चीज़ है।
प्रश्नकर्ता : यदि बुद्धि वाले व्यक्ति को सहज होना हो तो क्या करना पड़ेगा?
दादाश्री : वह तो, बुद्धि अपने आप कम होती जाएगी। यदि वह खुद तय करेगा कि इस बुद्धि की वैल्यू नहीं है तो वह कम होती चली जाएगी। आप जिसकी कीमत ज़्यादा मानते हो, वह भीतर में बढ़ती जाती है और जिसकी कीमत कम हो गई, वह घटती जाती है। पहले इसकी कीमत ज़्यादा मानी थी इसलिए यह बुद्धि बढ़ती गई।
प्रश्नकर्ता : बुद्धि का जो मैल है, बुद्धि का आवरण है, वह धुल जाना चाहिए न?
दादाश्री : जब तक हमें ज़रूरत है तब तक वह रहेगी। अभी तो लोग बुद्धि बढ़ाना चाहते हैं और बुद्धि कैसे बढ़े, उसके उपाय ढूँढ निकालते हैं। यह तो, बुद्धि का ही पोषण करता रहता है। फिर उसमें खाद डालता है। उससे बुद्धि बढ़ गई। सिर्फ, मनुष्य ही ज़रूरत से ज्यादा सयाने हैं। बुद्धि का उपयोग बहुत ज्यादा करते हैं।
प्रश्नकर्ता : यदि कोई ज्ञान लिए बगैर भी वह सीधे-सादे, सरल मार्ग से जाता है और उसकी समझ के अनुसार व्यवहार में सत्य और निष्ठा पूर्वक रहता है तो वहाँ पर जो क्लेश का अभाव रहता है और यहाँ पर ज्ञान लेने के बाद जो क्लेश का अभाव रहता है, उनमें क्या डिफरेन्स (अंतर) है?