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सहजता
पी.एच.डी. हो, दस व्यक्ति ग्रेज्युएट हो, दस व्यक्ति मैट्रिक पास हो, दस व्यक्ति गुजराती ही पढ़े हो, दस व्यक्ति अनपढ़ हो, दस छोटे बच्चे डेढ़-दो साल के और दस बुजुर्ग साठ- पैंसठ साल के, वे सभी इकट्ठे होकर जाएँ तो वहाँ पर धर्म है । अर्थात् जहाँ पर छोटे बच्चे भी बैठे रहें, स्त्रियाँ बैठी रहें, बुजुर्ग औरतें बैठी रहें और विवाहित लोग बैठे रहें, वहाँ धर्म है। क्योंकि जहाँ पर सामने वाले का मन वश कर सकने वाला हो, वहाँ पर ही वे बैठ सकते हैं वर्ना, नहीं बैठ सकते। जिनका खुद का मन अपने वश हो गया हो, वे ही सामने वाले का मन वश कर सकते हैं । जो स्वतंत्र रूप से चलते हैं, जिनका मन संपूर्ण रूप से वश में है, वहाँ काम होता है!
अगर मन वश हो जाए तो आप सबकुछ कर सकते हो। लोग आपके कहे अनुसार चलेंगे वर्ना, आप सिखाने जाओगे न तो कोई एक अक्षर भी नहीं सीखेगा बल्कि उल्टा चलेगा। इस कलियुग की हवा ही ऐसी है कि जिससे उल्टा चलेगा। यदि कोई उल्टा चलता है, वह उल्टासीधा बोलता है तो भी हम उसका साथ नहीं छोड़ते ।
सभी का मन वश रहता है, ज्ञानी को
प्रश्नकर्ता : दादा, इतने सारे व्यक्तियों को दादा के साथ अभेदता रहती है, वह किस प्रकार से रहती होगी ?
दादाश्री : वही आश्चर्य है न! और लगभग पच्चीस हज़ार लोग अभेदता रखते हैं!
अपने महात्माओं का मन हमारे वश रहता है, जिन्हें चौबीसों घंटे दादा के अलावा दूसरा कुछ नहीं । जितना मैं कहूँ उतना ही करते हैं। स्त्रियाँ और पुरुष, सभी के । उसमें स्त्रियों का ज़्यादा रहता है । स्त्रियाँ तो साहजिक हैं। साहजिक अर्थात् जो सहज हो चुके हैं उनके ही वश में रहेगी, वर्ना वश में नहीं रहती न !
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प्रश्नकर्ता : स्त्रियों को कोई दखल ही नहीं रहता न ? समर्पण से स्त्रियों को जल्दी प्राप्ति हो जाती है न ?