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________________ 34 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : नहीं, उसमें भी हर्ज नहीं हैं लेकिन लोग जो देखा-देखी करते हैं, उससे मुझे आपत्ति है। राजा की तरह पटाखे फूटते हुए दखते थे, खुद नहीं फोड़ते थे प्रश्नकर्ता : फिर, पटाखे का भी ऐसा ही था न! आप पटाखे नहीं फोड़ते थे न? दादाश्री : हाँ, मैं जब छोटा था तब मैंने आतिशबाजी नहीं की। क्या राजा कभी पटाखे फोड़ते हैं ? पटाखे तो मज़दूर फोड़ते हैं और राजा देखते हैं। किसी राजा ने पटाखे नहीं फोड़े हैं। सभी राजा कुर्सी पर बैठकर देखते रहते हैं और नौकर फोड़ते हैं पटाखे। तुझे इसमें क्या न्याय लगता है ? तू राजा हो तो तू खुद फोड़ेगा या देखेगा? प्रश्नकर्ता : अगर राजा होऊँगा तो देखूगा ही न! दादाश्री : अरे! तुझ में और राजाओं में क्या फर्क है? ये यहाँ के गायकवाड़ (राजा को) देखो तो वही वेश है। क्या फर्क है ? उनके पास गाँव नहीं हैं और तेरे पास भी गाँव नहीं है। अब तो सभी राजा ही हैं न! तो क्या तू शरीर से प्रजा है? बडौदा में सब तरफ पटाखे फोड़ने वाले हैं तो तुम? कुर्सी डालकर बैठो और देखो न! मुझे टैली करने (तालमेल बैठाने) की आदत है न! अतः मैं देख लेता हूँ कि इन पटाखों से, पतंग से क्या लाभ है। पतंग उड़ाने जाना सिर्फ एक प्रकार की कसरत है। बाकी, हमें तो लाभ से काम है, ऐसी ज़रूरत नहीं है। वह भी अभानता में छत पर घूमते रहते हैं। एक लड़का तो पूरा छप्पर लेकर नीचे आ गिरा! खेला है निर्दोष होली का खेल भाभी के संग प्रश्नकर्ता : आपने होली खेली थी? दादाश्री : हाँ, बचपन में हमारी भाभी के साथ होली खेली थी। तब वे ग्यारह साल की थीं और मैं दस साल का। प्रश्नकर्ता : आपकी भाभी? तब का रंग अभी भी नहीं जा रहा है।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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