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प्रस्तावना 'अहो' वह शुभ दिन कार्तिक सुद चौदस, संवत 1965 तरसाली गाँव में, पाटीदार कौम में जन्मे जग कल्याणी पुरुष! माँ जातिवान और बाप कुलवान, कुटुंब राजश्री संस्कारी खानदान क्षत्रियता, दुःख न दे किसी को, दयालु-करुणा-प्रेम अपार! 'अंबा' के लाल, 'अंबालाल', प्यारे सब के 'गला' कहलाते विचक्षण और जागृत खूब, उपनाम सात समोलिया से पहचाने जाते ! सात की उम्र में गए स्कूल में, पढ़े गुजराती में चौथी और अंग्रेज़ी में सातवीं तक लगी परवशता, नहीं लगा पढ़ना अच्छा, लेकिन साथ में बहुत थी समझ ! फेल होने पर निकाला सार, जान-बूझकर नहीं रखनी ढील ध्यानपूर्वक कर लेना है अभ्यास, ध्येय प्राप्ति और उत्तम परिणाम ! कम उम्र में हुआ भान, अनंत बार पढ़े लेकिन नहीं आया वह ज्ञान क्या पाया है पढ़ाई से? इतनी मेहनत से तो मिल जाते भगवान ! लघुत्तम सीखते हुए मिला यह ज्ञान, रकमों में अविभाज्य रूप से हैं भगवान भगवान हैं लघुत्तम सर्व जीवों में, लघुत्तम होने पर खुद बने भगवान ! भाव था स्वावलंबी रहने का, नहीं था पसंद परावलंबन और परतंत्रता सदा रहे प्रयत्नशील, नहीं पुसाएगा ऊपरी, स्वतंत्र जीवनकाज! ज़रूरतें कम और परिग्रह रहित, जीया जीवन सादा और सरल जीवन जीए खुमारी से, कभी भी न हुए लाचार! बुद्धि के आशय में थी नहीं नौकरी, निपुण हुए कॉमनसेन्स से व्यापार में न थी स्पृहा धनवान बनने की, सुखी रहे सदा संतोष रूपी धन से! विचारशील और विपुल मति, हर एक घटना का सार निकालकर करते हल न किया कभी अंधा अनुकरण, जिये सुघड़ और सिद्धांतपूर्ण जीवन !