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________________ ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) वह नहीं पहुँच पाया, लेकिन यदि उसका चलता तो पहुँच जाता न! वह निमित्त को इस तरह से नहीं काटता है । तो सभी जानवर ऐसे नहीं होते, कुछ ही ऐसे होते हैं। जो निमित्त को नहीं काटता, वह भगवान बनता है । अपने पास यह करेक्ट थर्मामीटर है न ? थर्मामीटर है या नहीं ? प्रश्नकर्ता : थर्मामीटर हैं, हाँ । 446 पता चला 'भुगते उसी की भूल' प्रश्नकर्ता : आप हमें जो ज्ञान की चाबियाँ देते हैं, उनका आपको बचपन में कोई अनुभव हुआ था ? दादाश्री : बचपन में कोई हमारा तौलिया लेकर चला जाता और आराम से उसका उपयोग करता । उस तौलिए का मालिक मैं, तो मैं चिढ़ जाता था। क्या है कि दूसरे बच्चों को चिढ़ते हुए देखकर मैं सीख गया था। बाद में फिर समझ में आया कि, 'चिढ़ने का यह व्यापार गलत है । मैं यहाँ पर भुगत रहा हूँ जबकि वह तो आराम से तौलिया काम में ले रहा है!' तो फिर ऐसा व्यापार ही बंद कर दिया । यह तो भुगते उसी की भूल है न! दुःख होने पर हिसाब निकाल लिया कि, 'हुआ वही न्याय' मैं छोटा था तब, अपने पिता जी से मैंने चार आने माँगे । वे दे नहीं रहे थे। तब मेरी बा ने सिफारिश की कि, 'क्यों बच्चे को रुला रहे हो? दे दो न उसे'। तब मैंने कहा, 'बा, मुझे आपकी सिफारिश नहीं चाहिए । मैं अपनी तरह से कर लूँगा' । यानी कि तब बचपन में मुझे बिना लकड़ी के जलन (दुःख) हुई थी। लेकिन हिसाब निकाला कि पूरी रात सुबकियाँ लेकर रोते रहें तो वह अनर्थ दंड है। बापू जी के पास पैसे नहीं होंगे तो मुझे नहीं दिए। उन्हें न्याय लगता है इसलिए वे सो जाते हैं और अगर मैं जागकर पूरी रात बिगाडूं तो उसका क्या मतलब है । मैं बचपन से ही न्याय ढूँढने जाता था, तो सब तरफ से मुझे मार
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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