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________________ 388 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) महीने में लोगों को छ: सौ साँप तो दिखाई ही दे जाते थे। चोर और लुटेरों से भी डर लगता था। प्रश्नकर्ता : ओहो! दादाश्री : और अभी तो बारह महीने में ऐसे कितने साँप दिखाई देते हैं? प्रश्नकर्ता : मैंने तो अभी देखा ही नहीं है, पहले देखे होंगे लेकिन बहुत नहीं। पर दादा, उसका कारण यह है कि आपको जंगलों में बहुत रहना पड़ता था। रत्नागिरी के पास के जंगल में लकड़ी लेने जाना होता था इसलिए फिर वहाँ पर तो साँप दिखेंगे ही न, उनका वास ही वहाँ पर है न! दादाश्री : हमारे घर पर भी बहुत देखे थे। जितने हमने जंगल में देखे उससे ज़्यादा तो घर में देखे। उन दिनों गाँवों में घर आँगन में बहुत साँप रहते थे क्योंकि यों भी लोगों के दो-चार ढहे हुए घर तो थे, कोई बाड़ा होता था, तो वहाँ छुपे रहते थे। लोग लकड़ियाँ रखते थे, करांठो (जलाने की लकड़ियाँ) रखे रखते थे और इतने बड़े-बड़े नाग! फिर खेत में भी घूमने जाते थे न, आम खाने जाते थे, कहीं और जाते थे, तो बाहर साँप दिखाई देते थे। प्रश्नकर्ता : बरसात में बहुत निकलते थे। ज़मीन में पानी भर जाता था इसलिए साँप बाहर निकल आते थे। दादाश्री : हाँ, इसलिए निकलते थे और शहरों में तो रोज़ दो तीन बिच्छू दिखाई देते थे। ऊपर से गिरते भी थे, हम सो रहे होते थे तब आँख पर गिर पड़ते थे। प्रश्नकर्ता : अब ऐसा नहीं है, अब तो लोगों की संख्या बढ़ गई है। दादाश्री : हं, ऐसा नहीं है, उन दिनों ये गटर नहीं थे। उन दिनों तो खुली संडास थीं और गटर भी सब खुले थे जबकि अभी तो पानी अंदर ही भरा रहता है न कमोड में तो अंदर आने जाने का रास्ता बंद
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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