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________________ 382 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) बंद होता गया। वह तो, जब बा की मृत्यु हुई थी तब उस तरह से रोया था, क्योंकि अगर मैं नहीं रोता तो अंदर घुटन होती और दुःखी हो जाता इसलिए जान-बूझकर रोया था। अंदर जो मेरेपन के परमाणु भरे हुए थे न, वे परमाणु आज लेफ्ट (छूट) हो जाते हैं। यानी उनका पानी बन जाता है और वह पानी अंदर से बाहर निकल जाता है। वर्ना छाती में गुबार भरा रहता कि 'मेरा-मेरा। मेरी बा-मेरी बा'। जाते हैं जमाई की मैयत में लेकिन स्वाद नहीं छोड़ते प्रश्नकर्ता : ऐसा अन्य कोई अनुभव बताइए न, दादा, जब जगत् की ऐसी पोल देखी हो। दादाश्री : मैं बाईस-तेईस साल का था, तब यहाँ बड़ौदा के पास विश्वामित्री स्टेशन था, छोटा सा फ्लेग स्टेशन था, छोटी गाड़ियों का, वहाँ पर गया था। एक परिचित आने वाले थे। मैं स्टेशन पर उनसे मिलने गया था। फिर स्टेशन पर बैठे-बैठे जब समय हुआ साढ़े ग्यारह-बारह बजे, तो जिनके जमाई की मृत्यु हो गई थी न, वे भाई भादरण जा रहे थे। मेरे मन में तो ऐसा था कि इनके जमाई की मृत्यु हो गई है इसलिए इन्हें बहुत दुःख हो रहा होगा, तो हमें उनसे नहीं मिलना है। अगर हम उनसे मिलेंगे तो उन्हें दुःख होगा, इसलिए हमें नहीं मिलना है। मैं अपने मन में इस तरह से घबरा रहा था और फिर तो वे ही मुझसे मिलने आए। तो इस तरह कपड़ा बाँधकर बैठे हुए थे, उनके जमाई की मृत्यु हो गई थी इसलिए। वर्ना पगड़ी पहनते, तो जब मैं मिला तो एक हाथ में ढेबरा (बाजरे का एक व्यंजन) और एक हाथ में ज़रा अचार था और मिर्ची खा रहे थे। 'अरे इस बूढ़े का जमाई मर गया है, फिर भी मिर्ची तो नहीं छोड़ रहा। वह आराम से ढेबरू चबा रहा है!' 'पूजा लाल की मैयत में जा रहा हूँ' उसने कहा। पूजा लाल उनके जमाई लगते थे और ये ससुर क्या कह रहे हैं? एक हाथ में ढेबरू और ऊपर से अचार खाते जा रहे थे और मुझसे कह रहे थे कि 'पूजा लाल की मैयत में जा रहा हूँ। तब मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने फोटो देखा। मुझसे कहते हैं, 'पूजा लाल मर गए'। मैंने कहा, 'ऐसी मज़ाक उड़ाई! ढेबरू और अचार हाथ में!'
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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