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________________ [10.3] ओब्लाइजिंग नेचर 363 तो एक बार हमारे भादरण गाँव वालों ने बंडी मँगवाई थी, तो बड़ौदा से बंडी ली थी। मैं तो पंद्रह आने में लाया था। मैं बंडी खरीदने में एक आना ज़्यादा देकर ठगा गया। उसके बाद एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि, 'यहाँ उस दुकान पर चौदह आने में मिलती है। अब उससे वापस तो नहीं माँग सकता था इसलिए फिर ऐसा कहा कि 'चौदह आने लूँगा'। वर्ना फिर उसके मन में ऐसा होता कि, 'एक आना हमने रख लिया'। हम तो भोले इंसान, तो नुकसान उठा लेते थे और वह व्यक्ति ऐसा समझता था कि हमने इसे एक आना ज़्यादा दे दिया। तो उन दिनों भी मैं अपना एक आना डाल देता था। दुकान वालों को दुःख न हो इसलिए भाव-ताव नहीं करते फिर मेरा स्वभाव कैसा था कि जिस ठेले के सामने खड़े रहकर पूछा तो उसी से लेता था। एक बार पूछने पर वह जो भी भाव बताता, उतने में ही मैं ले आता था। अगर वह खटपटिया होता तो कोई हर्ज नहीं था, हमें खटपट नहीं आती। 'तू ऐसा कर, दो आने कम कर,' ऐसा मुझे नहीं आता था। जितना आता था उतना ही करते न! तो वह सारी किच-किच करना मुझे अच्छा नहीं लगता था। शुरू से ऐसा ही था। यह सब अच्छा नहीं लगता था। फिर कम-ज़्यादा हो तो निभा लेता था। मेरा स्वभाव कैसा था कि उसे दुःख न हो इसलिए उसी के वहाँ से ले लेता था। मैं अपना स्वभाव जानता था। लोग औरों से भी मँगवाते थे, वे सात जगह पर पूछ-पूछकर, सभी का अपमान करके लाते थे। अतः मैं समझ जाता था कि ये लोग मेरे मुकाबले दो आने कम में लाते हैं और मेरे पास मँगवाया है तो मेरे दो आने ज़्यादा खर्च होंगे। जो कुछ भी ले जाता था उसमें से बारह आने के गंजी और फ्रॉक ले आता और उसके लिए दो आने कम लेता था। मैं सोचता था, 'अगर हम ठेले वाले से ठगे गए तो हम पर आरोप लगेगा। दूसरी किसी जगह पर दस आने का मिल रहा हो, और हमने दो आने ज़्यादा दे दिए लेकिन मँगवाने वाले को वहम होगा कि, 'यह दो आने
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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