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[ 10 ]
प्रकट हुए गुण बचपन से
[ 10.1 ]
से ही असामान्य व्यक्तित्व
शुरू
असामान्य बनने का विचार
प्रश्नकर्ता : आपको, जब इस ज्ञान का उदय हुआ उससे पहले पूर्वाश्रम में आपका व्यक्तित्व, आपके विचार और समझ कैसी थी, वह जानना है।
दादाश्री : मुझे तेरहवें साल में असामान्य बनने का विचार आया था। सामान्य अर्थात् सब्ज़ी - भाजी । असामान्य अर्थात् सामान्य लोगों को जो तकलीफें आती हैं, वैसी तकलीफें असामान्य लोगों को नहीं आतीं । सामान्य मनुष्य किसी की हेल्प नहीं कर सकता और असामान्य मनुष्य हेल्प के लिए ही होता है, इसलिए उसे जगत् एक्सेप्ट ( स्वीकार ) करता है ।
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प्रश्नकर्ता : असामान्य मनुष्य की डेफिनेशन (परिभाषा) क्या है ? दादाश्री : असामान्य अर्थात् जो जगत् के सभी लोगों के लिए फुल हो । हर एक जीव के लिए हेल्प फुल हो । कोई भी जीव उन्हें छुए तो उसे भी हेल्प हो जाए।
हेल्प
प्रश्नकर्ता : यों तो हर एक व्यक्ति किसी को किसी भी प्रकार से हेल्प करता ही है न ?
दादाश्री : वह खुद नहीं करता है, प्रकृति करवाती है। जब खुद स्वतंत्र हो जाता है, तब असामान्य बनता है ।