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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 329 अच्छी अंगूठी बनवाओ। फिर उससे कहा, 'आप अँगूठी पहनकर कन्यादान करने बैठना'। तो अच्छी अंगूठी पहनाई, उसके बाद वे आए। प्रश्नकर्ता : अँगूठी खींच लाई उन्हें। दादाश्री : अच्छी अंगूठी थी न, तो यों देखते जा रहे थे! लेकिन थे भोले, और कुछ भी नहीं था बेचारे को! वैसे भाई भी मिल जाते हैं न! देखो न, उन्हें संभालने वाले कैसे-कैसे मिल गए! पुण्यशाली थे न! तो लोगों ने उसकी शादी करवा दी, दोनों ने मिलकर और ऊपर से यह भाई गालियाँ दे रहा था, 'आपसे किसने कहा शादी करवाने का? बड़े आए शादी करवाने वाले! देखो तो सही! इनके चेहरे तो देखो!' ऐसा कह रहे थे। क्या लोगों को बता सकते थे यह सब फजीता? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : हाँ. लोगों को ऐसा सब नहीं बता सकते। हमें सिर्फ देखते ही रहना पड़ता है। हिसाब होगा तभी ऐसे लोग मिलेंगे न, वर्ना ऐसा भतीजा कैसे मिलता? निकाल देना तो सभी को आता है, उसके बजाय निकाल करो दादाश्री : हमारे चंद्रकांत के फादर तो बहुत चिढ़ गए क्योंकि वह उनके चाचा का बेटा लगता था, मेरा भतीजा लगता था। कहा 'अरे! इसे निकाल दो आप तो'। क्या कहा? प्रश्नकर्ता : निकाल दो। दादाश्री : निकाल देना तो हर किसी को आता है। हमें नया क्या करना आया, वह ढूँढ निकालो न! निकालना किसे नहीं आता? प्रश्नकर्ता : सभी को आता है। दादाश्री : हम किसी को निकालते नहीं हैं। प्रश्नकर्ता : आपकी खोज असल है।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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