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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 309 प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादाश्री : तो इस ज्ञान के बाद थोड़ा-बहुत सीखा, फिर भी कुछ खास नहीं आता। और अब यह सब सीखकर कहाँ जाना है ? मोक्ष में जाना है हमें तो। अब तो वह आड़ाई भी नहीं रखनी है और अड़ियलपन भी नहीं रखना है। प्रश्नकर्ता : ठीक है। खानदानी इंसान को चोर कैसे कह सकते हैं? दादाश्री : यदि उसे कुछ कहते तो मामा के बेटे से संबंध टूट जाता और वह भी कितने रुपयों के लिए? दो सौ, पाँच सौ रुपयों के लिए। अगर उनकी बेटी आए तो दस हज़ार रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं। अभी तो गाड़ी जैसे चल रही है वैसे ही चलने दो न। टूट जाएगा या नहीं टूट जाएगा? ऐसा नहीं कह सकते कि 'चोर हो। हरामखोर, मेरी जेब में से चोरी करके ले गया'। कोई बाहर वाला ले जाए, तब भी नहीं कह सकते। मैं कई लोगों से पूछता हूँ, 'यह जो चोरी करते हैं उसे क्या कहते हो?' तो कहते हैं, 'ज़रूरतमंद होगा इसलिए ले गया। बाहर भी इतने नरम दिल लोग होते हैं। जिन्होंने ज्ञान नहीं लिया है, वे भी कहते हैं कि 'उसे ज़रूरत होगी इसलिए ले गया होगा'। ऐसे लोग होते हैं या नहीं? प्रश्नकर्ता : होते हैं। दादाश्री : बाकी, मैं ऐसा नहीं मानता कि खानदानी लोगों के बच्चे चोर होते हैं। मैं इसे स्वीकार नहीं करता। खानदानी यदि चोर बन जाए तो वह खानदानियत कैसे कहलाएगी? अतः कल हमारे मामा के बेटे आए थे वे नीरू बहन से कुछ कह रहे थे कि 'मैं दादाजी की जेब से... क्या करता था?' प्रश्नकर्ता : वे कहते थे, 'मुझे सिनेमा जाना हो तो चुपचाप पैसे निकाल लेता था उनकी जेब से'।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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