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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
दादाश्री : वह बहुत बड़ा आसरा है! दिवाली बा : इसलिए अच्छा लगता है। दादाश्री : वह आसरा अच्छा है।
प्रश्नकर्ता : कहते हैं कि अब बस में अकेले आने की हिम्मत नहीं होती लेकिन आखिर में हीरा बा को आकर देख गए थे।
दादाश्री : अब उनकी हिम्मत नहीं होती लेकिन वहाँ बच्चों से मैंने कहा था न कि जब भी आप आओ तब इन्हें लेकर आना।
प्रश्नकर्ता : वे तो कहती हैं कि 'जब दादा का एक्सिडेन्ट हुआ तब देखने आई थीं, तब उनके दर्शन किए थे। उसके बाद से बहुत नहीं आ पातीं।
दादाश्री : उम्र हो गई है न! मुझसे भी एक साल बड़ी हैं।
मैं अपना पिछला अनुभव बताता हूँ कि यह सत्संग जैसा होना चाहिए वैसा क्यों नहीं होता था? क्योंकि भूतकाल की, ज्ञान होने से पहले की जो बातें निकलती थीं, वे आवरण लाती थीं। वह मुझे समझ में आया। तो जब से पूर्वकाल की बातें करना बंद कर दिया, तब से सत्संग सुंदर निकलता है। ज्ञान मिलने से पहले की बातों को पूर्वाश्रम कहते हैं, वह रिलेटिव आश्रम कहलाता है। वह सारा पोइजन ही कहा जाएगा। तो अब रियल आश्रम आया। हमारा सत्संग तो कैसा है ! रिलेटिव से कोई लेना-देना नहीं है, रियल में संपूर्णतः प्राप्त किया है। उनका, ज्ञानियों का हेतु क्या है ? समग्र लोक के कल्याण के लिए नॉर्मल भाव, अन्य कोई भाव ही नहीं और निरंतर सत्संग का माहौल तो ये (पूर्वाश्रम की) बातें भगवान के वहाँ दुर्गंध देती है। ऐसी (पूर्वाश्रम की बातें) पहले के ज्ञानियों में थीं या नहीं, वह शंकास्पद है।