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________________ 284 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दिवाली बा : हाँ, बहुत। मैं अटलादरा में मेरी सेवा भूल गई थी, शेल्फ (ताक) पर। वहाँ मेरा एक कमरा था, मेरे जैसी ही चार बुजुर्ग महिलाएँ। तो सभी की शेल्फ पर रखी थीं। तब फिर मैं बड़ौदा में घर पर आकर नहाई। फिर जब मेरे कपड़े लेने के लिए सामान निकाला तब मेरे ठाकुर जी की वह सेवा नहीं दिखाई दी। मैंने कहा, 'मेरी सेवा रह गई वहाँ शेल्फ पर और मैं शेल्फ पर से लेना ही भूल गई'। तब फिर वहाँ से मैं मोटर में आई थी इसलिए उपवास करना पड़ा और अंबालाल घर पर ही थे। अंतिम सालों में शरीर में कमज़ोरी की वजह से वे खुद भी काम पर नहीं जाते थे और शाम भी होने लगी। फिर पूजा के बिना तो मुझे उपवास करना पड़ता, यानी कि खाना नहीं खा सकती थी। मैं मोटर में आई थी इसलिए उस शाम को खाना नहीं खाना था मुझे। तो फिर अगले दिन पूजा किए बिना मैं खाना कैसे खाऊँगी? मैंने अपने मन में ऐसा सोचा। एक व्यक्ति अटलादरा जा रहा था, वह नौकरी करता था वहाँ, बनिया था। ठेठ मामा की पोल में उसके वहाँ जाकर पूछा। मैंने कहा, 'भाई, आपके घर से कोई अटलादरा जाएगा?' तो कहा, 'नहीं'। उनका बेटा था वह बोला, 'मेरे पापा तो आ गए'। अब किसके साथ? फिर वापस आई और फिर लगा कि अंबालाल को बताए बिना नहीं चलेगा? मैंने कहा, 'भाई, मैं तो मेरी पूजा भूल गई हूँ अटलादरा और आज अभी तो मुझे कुछ नहीं खाना है, मोटर में आई न इसलिए। लेकिन अब कल अगर यदि मैं लेने जाऊँगी तो वापस उपवास करना पड़ेगा और आते हुए वापस'। तब फिर उन्होंने कहा, 'तो फिर उपवास कर लेना!' ऐसा कहा न तो फिर मैं तो अंदर कमरे में चली गई। हाँ, तो ठीक है। उसके बाद फिर चंद्रकांत आया गाड़ी लेकर। चंद्रकांत रोज़ शाम को पाँच बजे दादा के पास आता था। तब फिर वे वहाँ से उठकर और चबूतरे पर गए। कुछ खड़का तो उन्हें पता चला कि चंद्रकांत आया है तो उन्होंने चंद्रकांत से कहा, 'खड़ा रह, तू अंदर आ गाड़ी रखकर। जूते मत निकालना। अटलादरा जाना है। दिवाली बा अपनी पूजा भूल गई हैं'। तब फिर चंद्रकांत खड़ा रहा और फिर खुद कोट पहनकर गए। तो वहाँ शेल्फ पर
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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