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________________ 272 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) कहती थीं वह समझता था। भले ही मुझे मूर्ख समझें, उससे ज़्यादा और क्या समझेंगी? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : उनका एक नियम था कि लेना है तो दादा को छलकर लेना है। मैं छला नहीं जाता था लेकिन उनके सामने ऐसा दिखावा करता था कि 'मैं छला गया हूँ'। इसीलिए तो कवि ने लिखा है न, कि 'लोभी से ठगे जाकर वीतराग आगे बढ़ जाते हैं'। लोभी को लोभ करने देते हैं। मूल स्वभाव तो जाता नहीं न बेचारों का! लुच्चा हो तो लुच्चाई करने देते हैं। यानी कि जान-बूझकर सब करने देते हैं। क्योंकि हमें तो अपने गाँव जाना है। भले ही वे करें। अगर बेवकूफ बनेंगे तो जाने देंगे हमें अपने गाँव प्रश्नकर्ता : ठीक है, हमें अपने गाँव जाना है। मानी को मान देकर, लोभी से ठगकर। दादाश्री : हाँ, इस तरह से जाने देते हैं न! 'हाँ, जाओ अभी, लेकिन आना फिर, जय स्वामीनारायण' कहते हैं, वर्ना रोकेंगे। 'आपके पास है और आप दे नहीं रहे हो'। लेकिन किस चीज़ के लिए? अगर पूछे कि 'किस चीज़ के?' तो कहते हैं, 'नहीं, किसी चीज़ के नहीं लेकिन आपको हमें देना चाहिए'। हं... इनके साथ कहाँ झगड़ा करें? उससे फिर फाइल खड़ी होगी। फाइल खड़ी होती है न? प्रश्नकर्ता : हाँ, फाइल खड़ी होगी। दादाश्री : और पैसे क्या सोते-सोते ले जा सकते हैं अपने साथ? प्रश्नकर्ता : आपकी चीकणी फाइल है, दादा। दादाश्री : नहीं है चीकणी फाइल, आपको चीकणी (गाढ़, अत्यंत राग-द्वेष) लगती है। आपको समझ में नहीं आता इसलिए चीकणी फाइल कह रहे हो। लेकिन मुझे चीकणी लगी ही नहीं। प्रश्नकर्ता : उन्हें यों ज़्यादा समझ नहीं सकते हैं।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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