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________________ 270 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) भोले हो आप, लोग आपके सभी पैसे खा जाते हैं'। मैंने कहा, 'कौन खाता है ? लोग खाते हैं क्या? हमारे कहने पर भी नहीं खाएँगे'। वह तो मुझे भी ऐसा समझती थीं न कि इन्हें अंटी में डालकर घूमती हूँ। अभी भी ऐसा है। मेरा तेल निकाल देती हैं, हाँ! प्रश्नकर्ता : अभी भी? दादाश्री : अभी भी। एक दिन मैंने ज़रा डाँटा था। उसके बाद रूठ गई थीं। फिर एक साल तक कुछ भी नहीं ले गईं। जो हर बार ले जाती थीं न, वह सब नहीं ले गईं। तब कहलवाया कि 'आपको देंगे, आप ले जाओ'। तब फिर लेने आईं तब मुझसे कहने लगीं, 'आपने उस दिन ऐसा कहा था न, इसलिए नहीं आ रही थी'। मैंने कहा, 'वह तो, अगर आप कच्ची पड़ जाती हो तब मुझे कहना ही पड़ेगा न!' 'मैं कच्ची? मैं किस बात में कच्ची? आप कच्चे हो' कहने लगीं। मैंने कहा, 'मैं समझ गया, सब समझ गया'। लेकिन बहुत ही भारी हिसाब-किताब है सारा! तो अभी वापस रास्ते पर आ गया है और फिर वापस पंक्चर होगा। प्रश्नकर्ता : हमारे जैसे तो उसमें बेवकूफ ही बन जाएँ। दादाश्री : नहीं, आप जैसे नहीं, अच्छे-अच्छों को फँसा दें, ऐसी हैं। सिर्फ वही जानती थीं कि, 'मैं इन सभी को, पूरी दुनिया को बेवकूफ बना सकती हूँ'। इतनी अक्ल है, और सही भी है, उनमें बुद्धि है तो सही। जो पचास स्त्रियों को उपदेश देने बैठें, उन्हें क्या नहीं करना आएगा? आप्त जैसा मानकर, छले गए जान-बूझकर इस बार ज़रा एकता की उनसे। हीरा बा की मृत्यु हो गई थी न, तब फिर उन्हें भी बुलाया था। वे अपने आप ही आई थीं, व्यवहार संभालने के लिए, देवरानी की डेथ हो गई थी न इसलिए। फिर मैंने कहा, 'मेरा कौन था? अब तो सिर्फ आप अकेले ही रहे हो। हीरा बा थे, वे चले गए'। यानी मैंने उन्हें यह बात आप्त जैसा मानकर कही।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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