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ज्ञानी पुरुष (भाग - 1)
भाभी से सीखा और बना स्त्री चरित्र में अव्वल
मैं तो उनके सामने ही कहता था कि मैं आपकी तो क्या, मैंने ईश्वर की भी नहीं सुनी है । आप जैसों को तो मैं अंटी में डालकर घूमता हूँ । हाँ, पेट का पानी तक नहीं हिले, वहाँ पर ऐसे त्रागे की क्या कीमत? अब मैं आपके ताबे में नहीं आऊँगा । स्त्री चरित्र कैसा होता है उसका पाठ आपने सिखाया है । अब मैं धोखा नहीं खाऊँगा, आप जैसी लाखों स्त्रियाँ आ जाएँ, फिर भी । ये दूसरे सभी लोग आपसे परेशान हो जाएँगे लेकिन मैं परेशान नहीं होऊँगा । ऐसे त्रागे तो मैंने बहुत देखे हैं, वर्ना मैं भी भोला था। आपके कपट के सारे संग्रह स्थान मैंने सभी तरफ से देख लिए हैं इसलिए जगत् में मैं स्त्री चरित्र (पहचानने) में अव्वल बन गया। आपका ही सिखाया हुआ है न! आपकी ही ढाल है !
प्रश्नकर्ता : आपने उस ढाल का उपयोग किया था ?
दादाश्री : उनके साथ उसी ढाल का उपयोग करता था। इस चीज़ में अन्य कोई पुरुष उनका पार नहीं पा सकता था ।
मैं पहचान जाता हूँ स्त्री चरित्र को, अब धोखा नहीं खाता
ये त्रागे तो हमने अपने घर में देखे हैं, अनुभव किया है न! ज़बरदस्त सिखाया भाभी ने तो ! पूरा चरित्र आज़माकर देखा मुझ पर। मैं समझ गया कि ‘स्त्री चरित्र दिखाया है यह' । कौन सा चरित्र ? स्त्री चरित्र । आज की सभी स्त्रियों के चरित्र पहचान जाता हूँ कि इसने यह स्त्री चरित्र किया। इस प्रकार त्रागा करते ही मैं समझ जाता हूँ कि यह त्रागा करने लगी है। अतः, स्त्री चरित्र क्या कर सकता है, वह सब मेरे लक्ष (जागृति) में है। मैं किसी भी स्त्री से धोखा नहीं खा सकता।
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मुझे कोई भी स्त्री बेवकूफ नहीं बना सकती । स्त्रियों को यह सब करना आता है न? सब आता है। मैं समझ जाता हूँ कि यह करने लगी है। स्त्री चरित्र पहचानकर सब को मुँह पर ही कह देता हूँ। यहाँ पर कोई नहीं करता, क्योंकि सभी जानते हैं कि दादा स्त्री चरित्र पहचानने