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ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 )
नहीं बैठते और आज मुझे ऐसा कह रहे हैं !' हम दोनों भाई कभी भी होटल में एक साथ नहीं बैठे थे । मर्यादा कभी भी नहीं छोड़ी।
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फिर मुझसे कहा, 'तुझे तेरी भाभी की तरफ से बहुत परेशानी है । वे तुझे बहुत दुःख देती है'। मैंने कहा, 'अब वह बहुत याद करने जैसा नहीं है। आप मन पर मत लेना। आपको पता चला, वही काफी है ! वास्तव में तो झगड़ा न हो जाए इसलिए अभी तक आपको नहीं बताया था' । फिर उनकी आँखों में पानी आ गया था । मुझसे कहा कि 'यह तो बहुत शिकारी स्त्री है'। मैंने कहा, 'तब फिर आपको पहचानना चाहिए न?' उन्होंने कहा, 'इसने तो मुझे छला है अभी तक'। मैंने कहा, 'यह माल अलग तरह का है, इसलिए ज़रा समझ लो' । उस दिन तो भाई की आँखों से आँसू बह निकले, 'अरेरे! तुझे इतना दुःख ! मैंने कहाँ इससे शादी की कि तुझे दुःख दे रही है ! मेरे भाई को इतनी परेशानी हो रही है, उसका मुझे अब पता चला ' । तब मैंने कहा, 'आप मन में ऐसा कुछ भी मत रखना। वह तो, जो सिर पर आ पड़ा है, उसे भुगत लेना है । लेकिन जैसा आप मान रहे थे, यह वैसा नहीं है'।
प्रश्नकर्ता: ठीक है ।
दादाश्री : उनके मन में इतना विश्वास तो हो गया कि इस स्त्री ने परेशान किया है।
प्रश्नकर्ता : इसी को संसार कहते हैं ।
दादाश्री : तो यह बीती थी न, हम पर भी बीती थी भाभी द्वारा । आश्वासन देने वाला ही रुलाकर दुःखी करता है
फिर तो हमारे बड़े भाई गुज़र गए। उस समय हमारी भाभी की उम्र कम थी, तब जो कोई भी आता था, वह उन्हें रुलाता था। तब मुझे ऐसा लगा कि 'ये भाभी ज़रा ज़्यादा सेन्सटिव हैं, तो ये लोग उस बेचारी को मार देंगे !' इसलिए फिर मैंने बा से कहा कि 'आप सब लोगों से ऐसा कह देना कि बहू से भाई के बारे में कोई बातचीत न करे' । अरे! यह क्या तूफान ? अरे ! बंदर के घाव जैसा कर रहे