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________________ ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) हों तब लोग ऐसे-ऐसे करते हैं ( सलाम करते हैं) और वहाँ क्यू में खड़े रहते हैं डिब्बा लेकर! अरे ! यह शर्मनाक नहीं कहलाएगा क्या? ऐसा तो क्या अच्छा दिखाई देता है ? इसके बजाय तो अगर कब्ज़ हो जाएगा तो जुलाब के लिए फंकी ले लेंगे। हमें तो कुदरती रूप से कभी क्यू मिली ही नहीं यह हमें नहीं पुसाएगा। जो क्यू में खड़े रहते हैं, उन्हें तो सामान्य जनता कहते हैं। जिनका खुद का स्वमान जैसा कुछ भी नहीं है, वह तो सामान्य जनता कहलाती है ! जिस तरह भेड़-बकरियों को लाइन में खड़े रखते हैं, उस तरह से ये भेड़ें खड़ी रहती हैं ! हमें तो कुदरती रूप से कभी क्यू (कतार) मिली ही नहीं ! क्या ऐसा शोभा देता है ? क्या वहाँ पर अंदर त्रिलोक नाथ बैठा हुआ है ? 244 आपके यहाँ पर अभी भी यह चल रहा है ? पूरे मुंबई शहर की इज़्ज़्त जाएगी! लेकिन बाकी सब जगह पर भी ऐसा ही है न ? प्रश्नकर्ता : सब जगह चॉल सिस्टम में ऐसा ही चलता है । दादाश्री : देखो! अब बेचारे इंसान का स्वाभिमान कितना आहत हो रहा है। क्या इसे स्वमान कहेंगे ? संडास जाने की भी स्वतंत्रता नहीं है? जब जाना हो तब जा नहीं सकते ! मुझे तो बहुत तरह के विचार आ जाते हैं कि यह किस तरह का है ? इतनी कीमत बढ़ गई इस चीज़ की ! जिसमें हाथ काले हों वह काम मेरा नहीं प्रश्नकर्ता : फिर क्या हुआ ? दादाश्री : मेरे मित्र ने कहा कि, 'मेरे कोयले के व्यापार में आपको पार्टनर की तरह रखेंगे। अपने यहाँ पर कोयले की दुकान में पार्टनरशिप' । मैंने कहा, 'नहीं भाई, कोयले का व्यापार मेरा नहीं है। जिसमें हाथ काले हों वह व्यापार मेरा नहीं है । जहाँ कोयला हो वहाँ मेरा काम नहीं है । क्या मेरे हाथ कोयले जैसे हैं? मैं तो कॉन्ट्रैक्ट के बिज़नेस वाला इंसान
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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