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________________ 232 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दँ?' मैंने कहा, 'नहीं, नहीं'। मुझे पता था कि यहाँ से अहमदाबाद की लोकल की टिकट पंद्रह आने हैं। लोकल की ही न, फास्ट-वास्ट की नहीं। कम से कम चार्ज लोकल का था। तो एक रुपया तो है, हमें और क्या चाहिए? वहाँ जब स्टेशन पर उतरेंगे तब उस समय तो उजाला होगा, उजाले में ही जमनादास के यहाँ चला जाऊँगा। प्रश्नकर्ता : जमनादास....? दादाश्री : हाँ, मेरे दोस्त जमनादास के यहाँ जाना तय किया था। वहाँ पर एक दोस्त रहता था। और भी बहुत जान-पहचान थी लेकिन यह दोस्त तो खास तौर पर चिट्ठियाँ लिखता रहता था कि 'एक बार आप आइए, आइए,' लेकिन मेरे पास ऐसा टाइम नहीं था क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट का बिज़नेस था। यह तो भाग आया था इसलिए उनका नंबर आया। हेल्प की थी मित्र की, तो वे बहुत उपकार मानते थे प्रश्नकर्ता : उस मित्र को आप पर बहुत प्रेम था? दादाश्री : ऐसा है न, जमनादास का मेरे प्रति इतना भाव क्यों था? क्योंकि मैंने उसकी हेल्प की थी। उसे जब दुकान लगानी थी तब। अब वह हेल्प भी कितनी? उसके फादर उसे अहमदाबाद जाने का किराया नहीं दे रहे थे, तो वह मैंने दे दिया था। उसे अहमदाबाद आने के लिए उसके पिता जी ने चार आने भी नहीं दिए थे। उसके पास किराया नहीं था, तो उस मित्र ने मुझसे कहा कि 'मुझे अहमदाबाद जाना है और फादर चार आने भी नहीं दे रहे हैं। किराया वगैरह कुछ भी नहीं है। तब मैंने कहा, 'मैं तुझे पाँच रुपए देता हूँ। उन दिनों के पाँच यानी पाँच सौ के समान थे। 'पाँच रुपए तो बहुत हैं। फिर तो मेरा काम हो जाएगा' उसने कहा। __ मैंने उसे दिए थे और कहा कि 'तू जा, तू अपनी तरह से व्यापार कर'। मेरे पास पैसे-वैसे कुछ ज्यादा नहीं होते थे लेकिन इस तरह से किराया वगैरह के पैसे दे देता था तब। यों वह पाँच रुपए लेकर आया था। इसलिए वह मित्र फिर बहुत उपकार मानता था। इसी बात से कि 'आपने मुझे पैसे
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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