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________________ [8.1] भाभी के साथ कर्मों का हिसाब 225 दो न, आप दे दो'। तब मैं समझ गया कि उनसे पैसे ऐंठने के लिए ऐसी तरकीब कर रही हैं इसलिए, ताकि हमें उनसे लेने पड़ें। लेकिन बड़े भाई और मैं दोनों ऐसे नहीं थे कि किसी से लें। जो हाथ पसारें वे कोई और होंगे। मैं फिर ढूँढ निकालता था। कोयले की बोरी तीसरी मंज़िल पर छुपा दी थी। मैंने खुद देखी थी बाद में क्योंकि मुझे दोपहर में हलुवा खाने की आदत थी। वे जब बाहर जाती थीं न, तब मैं अपने आप ही स्टोव लेकर हलुवा बनाकर खा लेता था। प्रश्नकर्ता : सेकन्ड वाइफ के साथ ऐसा ही सब होता है, दूसरी बार की थीं न वे, इसलिए। दादाश्री : दूसरी बार की थीं, इसीलिए तो गलत मिलीं। दूसरी बार की होती हैं तो ज़रा और ज़्यादा पुचकार-पुचकार कर रखते हैं। नहीं तो बहुत मर्द इंसान थे। हमारे बड़े भाई फर्स्ट वाइफ की तो सुनते ही नहीं थे। सेकन्ड वाइफ को मान देते थे हमारे बड़े भाई। 'इस साल हमारा व्यापार ऐसा चल रहा है, वैसा चल रहा है', उन्हें खुश करने के लिए ऐसा सब कहते थे। अब उन्हें खुश करके क्या करना है? और 'तुम्हें कोई साड़ी वगैरह चाहिए तो साड़ी ले आ। ज़रूरत है? ले, दूसरी ले आना। सोने की चूड़ियाँ बनवानी हैं? ले। हीरे की बूटियाँ बनवानी हैं ?' क्या उन्हें ऐसा बताने की ज़रूरत थी कि 'इस साल बिज़नेस ऐसा हुआ, वैसा हुआ?' जब नुकसान होगा, तब वे हम पर चिल्लाएँगी। 'आपको बिज़नेस करना नहीं आता', ऐसा कहेंगी। उस समय हमारी क्या इज़्ज़त रहेगी? भाई भोले थे इसलिए भाभी को हाथ डालने दिया व्यापार में मणि भाई भोले थे इसलिए दिवाली बा बिफर गए थे। उसके बाद उन्होंने व्यापार में हाथ डाल दिया। हम और हमारे भाई व्यापार करते थे न, तो वे इस तरह आकर पूछते थे जैसे इन्कम टैक्स ऑफिसर न हों, 'क्या हुआ इसमें? इस चीज़ से आपको कितना लाभ हुआ? इसमें कितना लाभ हुआ?' हमारा कॉन्ट्रैक्ट का बिज़नेस था मेरे ब्रदर के समय में। हमारी
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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