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[7] बड़े भाई
तो देवी जैसी हों! यह बड़ा तो राक्षस जैसा ही है और दूसरा छोटा संत जैसा है। एक भाई कैसा, और दूसरा भाई कैसा ! ' इन दोनों का सबकुछ अलग ही है, ऐसा भी कहते थे ।
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भाई का प्रेम बहुत था, लेकिन और कुछ भी मेल नहीं
खाता था
प्रश्नकर्ता : मणि भाई का बा के प्रति कैसा व्यवहार था ?
दादाश्री : मणि भाई तो राजसी इंसान थे, बा को कभी भी एक अक्षर भी नहीं कहा।
प्रश्नकर्ता: और दादा, आपका और मणि भाई के बीच कैसा था ?
दादाश्री : हमारा भी उतना ही मेल खाता था । प्रेम बहुत था लेकिन आपस में और कुछ भी मेल नहीं खाता था । बड़े भाई का प्रेम बहुत था । बाकी यह सब तो मैंने देखा था । यह पूरी दुनिया देखी और दुनिया का प्रेम भी देख लिया। प्रेम में क्या मिला, वह भी देख लिया ।
हिंसा के मत में अलग लेकिन अहंकार के मठ में एक
प्रश्नकर्ता : दादा, क्या आपका बड़े भाई से मतभेद होता था ? कब होता था ?
दादाश्री : बहुत फर्क था हम में। बड़े भाई और हम में। हम दोनों भाई थे लेकिन दोनों के मत अलग-अलग थे। ऐसे थे, जैसे एक ही मठ में से आए हों फिर भी विचारों में भेद था । वे हिंसा को स्वीकार करते थे, मैं हिंसा को स्वीकार नहीं करता था । तब मैं कहता था, 'आपको इसके फल भुगतने पड़ेंगे' । तब कहते थे, 'तू आया बड़ा भगत, नरसिंह मेहता जैसा' । अतः इस बारे में हमारा मतभेद था ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, आप हिंसा को स्वीकार नहीं करते थे और आपके बड़े भाई हिंसा को स्वीकार करते थे, तो ये मतभेद होने के बावजूद भी एक ही मठ, किस प्रकार से ? वह समझाइए।