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________________ [7] बड़े भाई 197 ऐसा अच्छा लगता है ? शोभा देता है क्या?' तब मैंने कहा, 'यह सब गलत है। ऐसा नहीं बोलना चाहिए'। खुद के चचेरे भाई और कितने अच्छे सूबा! वे बहुत लायक इंसान थे लेकिन मणि भाई उन्हें ऐसा सब कहते थे। वे सिर्फ उन्हें अकेले को ही ऐसा नहीं कहते थे, बाकी सब को भी कहते थे। फौजदार को, फौजदार के बाप को भी कह देते थे। वे किसी की नहीं सुनते थे। मैंने नहीं देखा कि उन्होंने कभी किसी सूबेदार की सुनी हो! और हम तो नम्र। हम सख्त के साथ ही सख्त रहते थे, लेकिन मेरी सख्ती तो दो आने की। यह बरछी है न मेरी, बरछी कहलाती है। एक्ज़ेक्ट हमारे पास बरछी थी, लेकिन उसका तभी पता चलता था जब हम उसका उपयोग करते थे। वाणी ही ऐसी निकलती थी कि सामने वाले का हार्ट बैठ जाए, छाती बैठ जाए। वह एक्ज़ेक्ट बरछी, हं। लेकिन अगर आपने हमारे बड़े भाई की बरछी देखी हो तो बहुत ग़ज़ब की थी! मैं भी घबराता था उनसे। कोई सही बात भी नहीं कह सकता था। ब्रान्डी की लत से कीमत चली गई बड़े भाई की तो ऐसा मिज़ाज कैसे पुसाए? उन्हें मार भी बहुत खानी पड़ती थी, हं। वह तो सरकार की वजह से ऐसी सारी झंझट थी लेकिन ब्रान्डी की वजह से उनकी जो बरछी थी वह खत्म हो गई। ब्रान्डी में उड़ा देते थे लोग। 'जाने दो न, पीते हैं' ऐसा कहते थे। प्रश्नकर्ता : बड़े भाई ब्रान्डी पीते थे? दादाश्री : हाँ, उन्हें पीने-करने को चाहिए था। एक तुलसी भाई थे न, उन्हें तो वे इतना-इतना कहते थे। तुलसी भाई ने एक ही बार कहा था, 'मणि भाई, इतनी दारू और यह सब... आपको इतनी ज्यादा नहीं पीनी चाहिए, ज़रा हिसाब से लो न!' तब उन्होंने कहा, 'मैं अपनी कमाई में से पीता हूँ, मेरे पैसे से लाकर पीता हूँ। आप मुझे सलाह मत देना'। ___ हाँ, ऐसा कहते थे। किसी की नहीं सुनते थे। भाषा गलत थी और बहुत अहंकारी । अब ऐसा गलत तो नहीं बोलना चाहिए, ऐसा नहीं बोलना
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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